चुनावी साल में अनशन पर मजबूर क्यों हो गए पायलट? जानिए इसके पीछे की ये 3 वजह

गौरव द्विवेदी

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Sachin Pilot Protest: सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ 11 अप्रैल को सुबह 11 बजे से शहीद स्मारक पर एक दिन का अनशन करेंगे. रविवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस ऐलान के बाद से ही राजस्थान का सियासी पारा गरम हो चला है. गहलोत सरकार पर आरोपों की झड़ी लगाने के बाद उन्हें आलाकमान ने तगड़ा झटका दिया. पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव जयराम रमेश और प्रवक्ता पवन खेड़ा के जवाबों के बाद अब प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि तक बता दिया है. इन सबके बीच अब सबकी निगाहें पायलट के अगले दांव पर टिकी है. पार्टी छोड़ने के बाद नई पार्टी बनाने के कयास के साथ ही कांग्रेस-बीजेपी से अलग अन्य पार्टी ज्वॉइन करने की भी चर्चाएं है. लेकिन इन सबके बीच मौजूदा सवाल यह है कि क्या वह स्थितियां थी जिसके चलते पायलट को यह रास्ता अपनाना पड़ा.

एक्सपर्ट मानते हैं कि गहलोत सरकार के खिलाफ साल 2020 की बगावत करके मानेसर से लौटे पायलट ने मौका गंवा दिया है. आलाकमान को मजबूर करने की बजाय पिछले 4 साल खामोश रहकर उन्होंने ना सिर्फ खुद को कमजोर किया, बल्कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी सरकार बखूबी चलाने का मौका मिल गया. नतीजन गहलोत ने ओल्ड पेंशन स्कीम, चिरंजीवी योजना, राइट टू हेल्थ जैसी कई उपलब्धियां खाते में दर्ज कर ली और पायलट राष्ट्रीय नेतृत्व से बदलाव की मांग करते रह गए. वहीं, अब यह पहला मौका है जब आलाकमान ने पायलट को लेकर तल्ख रवैया अपनाया है.  

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के स्टेट कॉ-ऑर्डिनेटर प्रो. संजय लोढ़ा का कहना है कि पायलट ने मानेसर एपिसोड के बाद रणनीतिक चूक की है और अब वह मौका गंवा चुके हैं. क्योंकि सीएम गहलोत को पार्टी चेहरा मान चुकी है. ऐसे में पायलट के सामने मजबूरी खुद को साबित करने की है. उनके सामने परेशानी यह भी है कि पार्टी अब पीसीसी चीफ डोटासरा को हटाकर संगठन की बागडोर सौंपे, यह भी मुश्किल नजर आ रहा है.

नंबर-1: सत्ता से बाहर, संगठन में बना रहे दबाव
दरअसल, मानेसर एपिसोड के बाद सत्ता-संगठन से बाहर किए जा चुके पायलट अब भविष्य की राजनीति तलाश रहे हैं. क्योंकि हाईकमान ने गहलोत के समर्थन में स्थिति स्पष्ट कर दी है. अब उनके लिए पीसीसी चीफ बनना भी मुश्किल है. क्योंकि डोटासरा को हटाकर कांग्रेस जाट को नाराज ना करनी चाहिए. ऐसे में पायलट संगठन में दबाव बनाना चाहते हैं ताकि उन्हें एक महत्वपूर्ण भूमिका में रखा जाए. मायने यह भी निकाले जा रहे हैं कि सियासी साल में चुनाव समिति के जरिए भी वह समर्थकों के टिकट की भी मांग करेंगे.

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नंबर-2: सरकार रिपीट हुई तो गहलोत की होगी जीत
एक स्थिति यह भी है कि जब आलाकमान गहलोत के काम पर जनादेश मांगने की बात कह चुका है. ऐसे में अगर कांग्रेस सत्ता में वापसी करती है तो जाहिर तौर पर यह गहलोत की जीत होगी. यानी उस वक्त भी पायलट ठोंक पाए, यह आसान नहीं होगा.

नंबर-3ः इधर, खुद को साबित करने में जुटे गहलोत
दिलचस्प बात यह हैं कि इस पूरे वाकये में सीएम गहलोत ने चुप्पी साध रखी है. वहीं, बीतें वर्षों की बात करें तो गहलोत ने महत्वकांक्षी योजनाओं के जरिए खुद को साबित करने की भरपूर कोशिश की है. चाहे वह इस साल का बजट हो या राज्य की जनता को योजनाओं का तोहफा. जब भारत जोड़ो यात्रा के दौरान अलवर में जनसभा हुई तो 500 रुपए में सिलेंडर का ऐलान कर दिया. साथ ही चिरंजीवी योजना, इंग्लिश मीडियम स्कूल, ओल्ड पेंशन स्कीम के बाद नए जिलें और संभाग की घोषणा करके गहलोत ने अपनी जादूगरी बता दी. यानी एक ओर जहां पायलट दिल्ली के भरोसे बैठे रहे तो वहीं, दूसरी ओर गहलोत ने अपने तरकश से एक के बाद एक कई तीर चला दिए. जिसके बाद अब पायलट के लिए चुनौतियां कम भी नहीं है. आलाकमान इस अनशन के बाद क्या एक्शन लेता है, यह भी काफी अहम होगा.

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