IAS की नौकरी छोड़ रणथंभौर में जंगल बनाने वाले आदित्य सिंह का 57 की उम्र में निधन

राजस्थान तक

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IAS की नौकरी छोड़ वन्यजीवों के लिए ऐसा समर्पण कि खुद बना दिया जंगल, जानें आदित्य सिंह की कहानी
IAS की नौकरी छोड़ वन्यजीवों के लिए ऐसा समर्पण कि खुद बना दिया जंगल, जानें आदित्य सिंह की कहानी
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Wildlife Photographer Aditya Singh Dies: सिविल सर्विसेज की नौकरी छोड़ अपना पूरा जीवन वाइल्ड लाइफ (Wild Life) के लिए समर्पित कर देने वाले आदित्य सिंह ‘डिकी’ (Aditya Singh) नहीं रहे. आदित्य सिंह का 57 साल की उम्र में बुधवार को हार्ट अटैक से निधन हो गया. वे नींद में थे और फिर उठे ही नहीं. वाइल्ड लाइफ के क्षेत्र में अपने अतुलनीय योगदान के लिए पहचान बना चुके आदित्य सिंह का जाना वन्य जीव प्रेमियों के लिए बड़ी क्षति है. राजस्थान तक आपको बता रहा है वो कहानी जिसने रणथंभौर नेशनल पार्क (Ranthambore National Park) में दुनिया के वन्यजीवों प्रेमियों के बीच आदित्य सिंह को अमर कर दिया.

मई 1966 में जन्मे आदित्य सिंह ‘डिकी’ ने इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री ली. इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा पास की और आईएएस अधिकारी बने. इनके मित्र और गाइड एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष याग्वेंद्र सिंह ने बताया कि वे हिमाचल प्रदेश कैडर के अधिकारी थे. सिंह के परिवार में उनकी पत्नी, पूनम और 11 वर्षीय बेटी नायरा है. पत्नी फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं.

पहली बार वर्ष 1995 में रणथंभौर आए

याग्वेंद्र सिंह ने बताया कि साल 1995 में वे पहली बार रणथंभौर आए और सबसे पहले झूमर बावड़ी होटल में रुके. तब पहली मुलाकात हुई. मेरे साथ सफारी में गए थे इन्हें रणथंभौर के बारे में जानने की खूब रुचि थी. उस जमाने में इतनी रुचि लेने वाले गेस्ट नहीं आते थे. इनके सवाल और इंट्रेस्ट देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ था. 1999 में सरस डेयरी की बिल्डिंग लीज पर लेकर एक होटल शुरू किया था ‘रणथंभौर बाग’. याग्वेंद्र सिंह आगे बताते हैं कि आदित्य सिंह गजब के स्टोरी टेलर थे. उनकी वाइल्ड लाइफ से जुड़ी कहानियां इतनी रोचक थीं कि बिना उनके खत्म हुए कोई हिलता तक नहीं था.

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आदित्य सिंह ने जंगल पर जंगल बना दिया

बात 1999 की है. आदित्य सिंह एक डाक्यूमेंट्री पर काम करते हुए भदलाव घाटी में गए. वहां अवैध खनन और लकड़ियों की कटाई बड़े पैमाने पर देखी. यहां के गड्‌ढे रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के बफर जोन की तरह थे उन्हें समतल भी किया जा रहा था. आदित्य सिंह ने जब ये देखा तो चिंतित हो गए. अवैध कटाई और खनन को रोकने के लिए आदित्य सिंह ने सेंचुरी की सीमा पर जमीन खरीदनी शुरू की और करीब 35 एकड़ जमीन खरीदकर उसपर शानदार जंगल डवलप कर दिया जो अवैध कटाई और खनन करने वालों के लिए बफर जोन का काम करने लगा. इस मानव निर्मित जंगल को खरीदने के लिए करोड़ों के ऑफर आए पर आदित्य सिंह ने इसे बेचना मुनासिब नहीं समझा. उनका पूरा जोर जंगल को बचाने पर था वो भी किसी भी कीमत पर.

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रणथंभौर के बाघों की थी अच्छी पहचान

याग्वेंद्र सिंह बताते हैं कि उन्हें रणथंभौर नेशनल पार्क के बाघों की बहुत गहरी पहचान थी. उन्होंने ‘नूर: क्वीन ऑफ रणथंभौर’ पुस्तक का सह-लेखन भी किया था. इसमें तस्वीरों और कहानियों के संग्रह के माध्यम से बाघिन नूर के जीवन के अनेक पहलुओं को शामिल किया गया है.

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पुरस्कार के पैसों से करते थे समाज सेवा

आदित्य सिंह पुरस्कार के पैसों से समाज सेवा करते थे. उन्होंने अपने शौक को व्यवसाय नहीं बनने दिया. पुरस्कारों से जीते पैसे का उपयोग वे रणथंभौर के आसपास रहने वाले परिवारों के बच्चों की शिक्षा, भोजन, छात्रावास शुल्क के लिए करते थे. आदित्य सिंह को वन्य जीव संरक्षण के लिए प्रतिष्ठित कार्ल ज़ीस पुरस्कार (2012) और सैंक्चुरी वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर ऑफ द ईयर (2011) का अवार्ड मिला था. उनके पास रणथंभौर टाइगर रिजर्व से दो दशकों में क्लिक की गई फोटोज का बड़ा कलेक्शन है जिसके लिए भी उन्हें जाना जाता है.

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