सचिन पायलट ने क्यों साध ली है चुप्पी, क्या है इसके पीछे की कहानी? जानें

राजस्थान तक

06 Sep 2023 (अपडेटेड: Sep 7 2023 7:59 AM)

Why has Sachin Pilot kept silence: राजस्थान में साल 2013 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद बतौर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट (sachin pilot) ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया. 2018 में प्रदेश में कांग्रेस (congress) पार्टी की वापसी के बाद से ही पायलट मुखर रहे हैं वो चाहे अपनी सरकार के खिलाफ हो […]

सचिन पायलट ने क्यों साध ली है चुप्पी, क्या है इसकी पीछे की कहानी? जानें

सचिन पायलट ने क्यों साध ली है चुप्पी, क्या है इसकी पीछे की कहानी? जानें

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Why has Sachin Pilot kept silence: राजस्थान में साल 2013 में कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने के बाद बतौर प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट (sachin pilot) ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया. 2018 में प्रदेश में कांग्रेस (congress) पार्टी की वापसी के बाद से ही पायलट मुखर रहे हैं वो चाहे अपनी सरकार के खिलाफ हो या पूर्ववर्ती राजे सरकार के खिलाफ. इस दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (cm ashok gehlot) व उनके बीच बयानबाजियों ने प्रदेश की राजनीति में गहलोत Vs पायलट का अध्याय भी जोड़ दिया. अब जब चुनाव बिल्कुल करीब है तो पायलट अचानक शांत पड़ गए हैं. लोगों के जेहन में ये सवाल बार-बार कौंध रहा है कि पायलट चुप क्यों है…क्या इस खामोशी के पीछे कोई तूफान है या कोई रणनीति जो कांग्रेस पार्टी में उनके भविष्य को तय करेगी.

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लोग इन्हीं सवालों का जवाब वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही के इस चुनावी विश्लेषण में पा सकते हैं. पायलट की चुप्पी पर अपनी बात रखते हुए विजय विद्रोही कहते हैं कि वे दिमाग से नहीं बल्कि दिल से काम लेते हैं. इसके पीछे वजह उनकी राशि भी है. 7 सितंबर को जन्मे सचिन पायलट कन्या राशि के हैं. इस राशि के जातक अक्सर दिल से ही काम करते हैं.

चुनाव करीब आने पर बदल जाती है राजनीति

वरिष्ठ पत्रकार विजय विद्रोही कहते हैं- 20-21 साल पहले की बात है. तब पायलट की राजनीति में एंट्री हुई थी. जयपुर में सर्किट हाउस के लॉन में पहला इंटरव्यू सचिन पायलट का किया था. पहली बार वे थोड़े घबराए हुए थे. दुबले से पतले से… पर अब वो परिपक्व हो चुके हैं. अब सवाल ये उठता है कि आज जब चतुर चालाक और आक्रामक राजनीति हो रही है तो उसमें दिल से फैसले लेने वाले पायलट इसमें फिट हैं? दो चीजें कही जा रही हैं कि वे चुप हो गए हैं तेवर ढीले पड़ गए हैं. लेकिन हर बार तलवार खींचकर ही लड़ाई लड़ी जाए ये जरूरी नहीं. जब चुनाव पास आते हैं तो राजनीति बिल्कुल बदल जाती है. यही बात सचिन पायलट गहलोत और वसुंधरा राजे से सीख रहे हैं.

तो क्या समर्थकों के लिए राजनीति कर रहे पायलट?

विजय विद्रोही कहते हैं- बहुत बार समर्थकों के हिसाब से राजनीति करनी पड़ती है. समर्थकों के हित-अहित देखकर करनी पड़ती है. आखिर में ये समर्थक ही काम आते हैं. अप्रत्यक्ष रूप से समर्थकों के लिए राजनीति करके प्रत्यक्ष रूप में वे पार्टी के लिए फायदा दिला रहे होते हैं. बदले में एक बड़ा पद मिलने की संभावना होती है तो आपके लिए संभावना जाग जाती है. जिसके पास ज्यादा लोग उसी के पास बड़ा पद. आखिर जब-जब विधायक दल की बैठक होती है तो 70-80 फीसदी विधायक गहलोत के पास क्यों चले आते हैं. बीजेपी में जब वसुंधरा की बात होती है तो उनके पक्ष में 70-80 फीसदी लोग क्यों पहुंच जाते हैं. इसलिए सचिन पायलट ने अपने तेवर बदले हैं. इसको इस अंदाज में भी समझा जाना चाहिए.

फल समर्थकों के हिस्से में भी आएगा

सचिन पायलट के बहाने एक युवा नेता की राजनीति को समझने की कोशिश की जा रही है. अब कांग्रेस में भी पैठ बनी है. जब आला कमान के कहने पर सचिन पायलट ने बयानबाजी पर रोक लगाई है तो उसका कोई फल मिलेगा और फल समर्थकों के हिस्से में भी जाएगा.

जयपुर में लड़ना है तो दिल्ली की बैकिंग चाहिए

एक तार्किक वजह ये नजर आती है कि आला कमान के साथ वे रिश्ते खराब नहीं करना चाहते हैं. क्योंकि जयपुर में लड़ना है तो दिल्ली की बैकिंग चाहिए… अभी राजे जयपुर में लड़ रही हैं पर दिल्ली की बैकिंग नहीं है तो तमाम सियासी अस्त्र-शस्त्र, तमाम अनुभव होने के बावजूद कहीं न कहीं बैकफुट पर नजर आती हैं. भक्ति भावना कर तमाम मंदिरों में दर्शन कर खोई हुई जमीन को वापस लाने की कवायद करती हैं. अब पायलट को आगे देखना है कि इस समय ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को टिकट मिल जाए, स्टार प्रचारक के रूप में जाने का मौका मिले जिससे उनका वजूद बड़ा हो जाए.

अपनी जाति का नेता होना पड़ेगा

अशोक गहलोत बार-बार बताने की कोशिश करते हैं पायलट गुर्जर के नेता हैं. फिर बाकी लोग नाराज हो जाते हैं. हालांकि अपको अपनी जाति का नेता तो होना ही पड़ेगा. जाति एक कड़वी सच्चाई है. जातिगत आधार पर ही पार्टियां टिकट बांटती हैं. राजस्थान में 200 विधानसभाओं में 2 दर्जन सीटें गुर्जर की मान लीजिए.. ऐसे में सचिन पायलट की वजह से 2 दर्जन से ज्यादा सीटें सीधे कांग्रेस की झोली में आ सकती हैं. इनके पिता की लगेसी के अलावा इसका विस्तार युवाओं, महिलाओं, किसानों के बीच में हो और ये 40-45 सीटें इनकी वजह से कांग्रेस पार्टी के हिस्से में आए तो ये बड़ी कामयाबी होगी. राजनीति में बेस वोट जरूरी है. नींव के बाद ही इमारत बनेगी. सचिन पायलट इस मामले में अपना बेस पुख्ता कर चुके हैं.

यहां क्लिक करके सुनिए ये पूरा विश्लेषण

Video: सचिन पायलट ऐसे कैसे हो गए? चुप्पी के पीछे की पूरी कहानी…

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