How Vasundhara Raje became the ‘Maharani’ of Rajasthan politics: राजस्थान की सियासत में पिछले 25 सालों के बाद इस बार बहुत कुछ बदला सा नजर आ रहा है. वजह है सत्तासीन कांग्रेस 25 सालों की अल्टरनेट परंपरा को खत्म करने का पूरा मन बना चुकी है. वहीं BJP किसी भी हाल में रिटर्न होने की कवायद में लगी है. इन सबके बीच बीजेपी और कांग्रेस में बदलाव की बयार भी बह रही है. बीजेपी एक ऐसे खिलाड़ी को सियासी पिच से दूर करती दिख रही है जिनके नेतृत्व में पार्टी ने दो बार गहलोत के जादू को बेअसर कर दिया.
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साल 1998 में कांग्रेस की जीत के बाद CM बने अशोक गहलोत का जादू जब सिर चढ़कर बोलने लगा. तब बीजेपी ने वसुंधरा राजे को आगे कर दिया. यहीं से राजे का राजस्थान की सियासत में ‘महारानी’ अंदाज देखने को मिला.
जब राजे पहली बार बनीं सीएम
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सबसे बड़ी जीत दर्ज की थी. 200 में 152 सीटों पर पार्टी को बंपर जीत मिली और गहलोत की पहली बार ताजपोशी हुई. 5 साल बाद 2003 में फिर चुनाव हुए. गहलोत और कांग्रेस पिछली जीत से पूरे जोश में थे. इसी बीच बीजेपी ने वसुंधरा राजे को आगे कर दिया. बीजेपी का ये दांव तुरुप का इक्का साबित हुआ. पार्टी की सत्ता में शानदार वापसी हुई. कहा जाता है उस वक्त वसुंधरा नहीं होतीं तो गहलोत से सत्ता छीनना नामुमकिन था. बीजेपी ने वसुंधरा को जीत का तोहफा दिया और वे पहली बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं.
दूसरी बार गहलोत ने दिखाया जादू
साल 2008 में राजे के खिलाफ गहलोत चुनावी मैदान में थे. दोनों पार्टियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया, लेकिन इस बार गहलोत ने चुनावी बिसात पर एक भी दांव खाली न हो जाने की पूरी तैयारी कर ली. नतीजा हुआ कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी. हालांकि अंतर बहुत ज्यादा नहीं था. कांग्रेस को जहां 98 सीटें मिली थीं वहीं बीजेपी को 78 सीट.
2013 में कांग्रेस को रिकॉर्डतोड़ मतों से हराया
5 साल तक राजे चुप रहीं. इधर 2013 में इन्हें चुनावी मैदान में गहलोत को छकाने का मौका मिला. महारानी ने अपना अंदाज दिखाया. राजस्थान की बहू बनकर मैदान में उतरीं राजे ने कांग्रेस को रिकॉर्डतोड़ मतों से हराया. राजस्थान में कांग्रेस की वो अबतक की वो सबसे बड़ी हार थी और भाजपा की सबसे बड़ी जीत. जहां कांग्रेस महज 37 सीटों पर सिमट गई वहीं बीजेपी ने 200 में 163 सीटों पर कमल खिला दिया. 2013 में वसुंधरा दूसरी बार सीएम बनीं और एक बार फिर प्रदेश और पार्टी दोनों में अपना लोहा मनवा दिया.
2018 में पायलट का जोर फिर फेस वार
कहा जाता है कि 2018 के चुनाव से पहले पार्टी ने प्रदेश की कमान युवा नेता पायलट के हाथ में सौंप दी. पायलट ने एड़ी-चोटी लगा दिया और 2018 में सत्ता में कांग्रेस पार्टी की वापसी हुई. माना जा रहा था कि पार्टी इस बार बदलाव करेगी और पायलट को सीएम बनाया जाएगा पर सेहरा अनुभवी गहलोत के सिर सज गया. फिर शुरू हुई कांग्रेस पार्टी में अंदरुनी कलह और फेस वार.
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पार्ट- 2 जब खुलेआम एक दूसरे के खिलाफ आए दोनों लीडर
पार्ट- 3 जब गहलोत खेमे ने की बगावत
फेसवार से बीजेपी भी दूर नहीं
कांग्रेस पार्टी ने चुनाव करीब आने तक फेसवार को लगभग डॉयल्यूट कर लिया पर बीजेपी में ये और मुखर होता नजर आया. राजे के करीबी कैलाश मेघावाल को पार्टी ने सस्पेंड किया तो उन्होंने गुटाबजी की पूरी कहानी कह दी. राजे के साथ हो रही अनदेखी को भी सार्वजनिक कर दिया जो गाहे-बगाहे मंचों पर देखी जा रही थी.
क्या बीजेपी राजे से कर रही किनारा?
वसुंधरा राजे.. जिन्हें आज राजस्थान का बच्चा-बच्चा ‘महारानी’ के नाम से जानता है. पर क्या वजह है कि राजे ने बीजेपी की सभाओं और यात्राओं से दूरी बना ली? क्या राजस्थान बीजेपी की गुटबाजी अब इतनी बढ़ चुकी है कि वो महारानी पर भी हावी हो रही है? क्या बीजेपी के ही कुछ लोग वसुंधरा को अब रास्ते से हटाना चाहते हैं? अब देखना होगा इस बार अपना राज लाने के लिए राजे अपनी पार्टी और राजस्थान में कौन सा खेल करती हैं?
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