What is Ravindra Singh Bhati’s plan after winning: राजस्थान (rajasthan news) के बाड़मेर (barmer news) जिले की शिव विधानसभा से निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी ने राजस्थान तक से खास बातचीत करते हुए अपनी जीत का दावा किया है. रविंद्र सिंह ने अपना मेनिफेस्टो भी जारी किया है. भाटी ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष बाद भी शिव की जनता को पेयजल संकट से जूझना पड़ रहा है. बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं है, स्कूलों में टीचर नहीं हैं. किसानों को ना पर्याप्त बिजली मिल रही है और ना सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी.
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भाटी ने कहा कि पिछले 50 साल में राजनीतिक पार्टियों ने यहां मूलभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंचाई. हर कोई चुनाव लड़ने के वक्त यही दावे करता है कि हमारी सरकार आयेगी तो बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाएंगे, लेकिन धरातल पर नेताओं के दावों के अलावा कुछ नहीं. रविंद्र भाटी ने कहा कि शिव से किसी को तो आगे आना ही था, इसलिए मैं 3 तारीख को जीतकर आऊंगा और जनता से जो वादे किए हैं, उसे पूरा करूंगा.
लांठा हां, हक सारूं लड़ सकां
रविंद्र भाटी ने कहा कि जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में छात्र हितों के संघर्ष के दौरान जनता ने मुझे परख रखा है. अभी लड़ने की उम्र है. लांठा हां, हक सारूं लड़ सकां…और हक से वास्ते लोगां से साथे अर शिव रो विकास करांला. भाटी ने कहा कि समर्थकों और शिव की जनता में गजब का उत्साह है. 3 दिसंबर को यहां की जनता इतिहास लिखने जा रही है. मुझे ही जानता जिताएगी और मैं जनता के सुख दुख में हमेशा साथ खड़ा दिखाई दूंगा.
जीतने के बाद किस पार्टी में जाएंगे भाटी?
निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद किस पार्टी में जायेंगे? इस सवाल के जवाब में रविंद्र सिंह भाटी ने कहा कि जनता के प्यार, आशीर्वाद और समर्पण को देखकर ही मैं चुनाव लड़ रहा हूं. इसलिए जीतने के बाद जनता और समर्थक ही तय करेंगे कि उन्हें किस पार्टी में जाना है. जहां कहेंगे उधर चले जायेंगे. ध्येय यही रहेगा कि विकास और मूलभूत सुविधाओं की गति को कैसे बढ़ाया जाए.
आपको बता दें कि राजस्थान की शिव विधानसभा में पांच बड़े चेहरों के बीच कड़ी टक्कर होने से शिव विधानसभा का चुनाव बड़ा रोचक हो गया है. कांग्रेस से अमीन खान, बीजेपी से स्वरूपसिंह खारा, आरएलपी से जालमसिंह रावलोत को उतारा है. बीजेपी से बागी रविंद्र सिंह भाटी और कांग्रेस से बागी फतेह खान ने तीनों पार्टियों का चुनावी समीकरण बिगाड़ दिया है. यहां किसी की जीत और एक दूसरे के वोटिंग प्रतिशत की तुलना करना भी राजनीतिक जानकारों के लिए टेढ़ी खीर बन गया है. अब 3 दिसंबर को मतगणना के दिन ही स्पष्ट हो पाएगा कि कौन विजय पताका फहराने में कामयाब रहा.
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