Right to Health Bill: राजस्थान सरकार और डॉक्टर्स के बीच चला आ रहा टकराव खत्म हो गया है. राइट टू हेल्थ बिल में जिन मुद्दों को लेकर गतिरोध था, उन पर दोनों पक्षों के बीच सहमति बन चुकी है. अब बड़ा सवाल यह है कि जिस बिल के विरोध के चलते पूरे प्रदेश के मरीजों को खामियाजा उठाना पड़ा या बीतें दिनों चिकित्सा व्यवस्था चरमरा गई. उस बिल से आखिर मिला क्या?
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यह सवाल इसलिए क्योंकि जिन बिंदुओं पर सहमति बनी है, उसके मुताबिक प्रदेश के कुल 98 फीसदी हॉस्पिटल राइट टू हेल्थ बिल के प्रावधानों से बाहर होंगे. सिर्फ 9 मेडिकल कॉलेज और सरकार की सब्सिडी का लाभ ले रहे 47 हॉस्पिटल ही दायरे में आएंगे. जबकि राजस्थान में 10 हजार से भी ज्यादा हॉस्पिटल है.
पूरे घटनाक्रम और उसके अंत को समझा जाए तो अब ये साफ है कि जनता को इस बिल से कोई खास फायदा नहीं होने वाला. यह बात खुद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के उस लेटर से जाहिर हो रही है, जो उन्होंने हड़ताल खत्म करने की घोषणा करते हुए जारी किया.
आईएमए ने जारी किया सर्कुलर
आईएमए ने सर्कुलर में लिखा कि 97 से 98 फीसदी निजी हॉस्पिटल इस बिल के प्रावधानों से बाहर होंगे. ऐसे में अब हड़ताल खत्म कर मंगलवार शाम 8 बजे से कार्य बहिष्कार खत्म होगा. आईएमए के राज्य सचिव डॉ. पीसी गर्ग की मानें तो इसमें सिर्फ मल्टीस्पेशिलिटी हॉस्पिटल ही बाध्य होंगे. उदाहरण के लिए आंख, कान या गला समेत कोई भी क्लिनिक जो मल्टीस्पेशलिटी नहीं है, उस पर यह बिल लागू नहीं होता है. ऐसे में प्रदेश में हजारो संस्थान दायरें में नहीं होंगे.
वहीं, आईएमए के अध्यक्ष सुनील चुघ का कहना है कि इसके दायरें में सिर्फ 9 मेडिकल कॉलेज ही होंगे. वह भी राजस्थान के उदयपुर और जयपुर समेत कुछ जिलों में स्थापित है. इसके अलावा राज्य सरकार की सब्सिडी पा रहे 47 हॉस्पिटल पर इसके नियम लागू होंगे.
गौरतलब है कि 50 बेड से कम वाले निजी मल्टीस्पेशियलिटी अस्पतालों को आरटीएच से बाहर कर दिया है. इसके अलावा सरकार से अनुदानित दर पर भूमि और भवन के रूप में कोई सुविधा लिए बिना स्थापित सभी निजी अस्पताल भी आरटीएच अधिनियम से बाहर होंगे. इसके तहत उन ही अस्पताल को शामिल किया है जो पीपीपी मोड पर स्थापित है या सरकार से मुफ्त या रियायती दरों पर जमीन लेकर संचालित हो रहे है.
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