कटारिया के गढ़ मेवाड़ में गहलोत खेलेंगे बड़ा दांव! एक साल में 18 दौरे के पीछे जादूगर की क्या है सियासत?

Satish Sharma

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Mewar on target of Ashok Gehlot: विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नया दांव खेलने की तैयारी में है. कटारिया के गढ़ में गहलोत का निशाना जैन वोटबैंक पर हैं. वहीं, समाज जो कटारिया की राजनीति का मजबूत आधार रहा, अब इस वर्ग में सीएम सेंधमारी करने की कोशिश कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री गहलोत सोमवार को मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ जैनोलॉजी एंड प्राकृत भवन का शिलान्यास करने भी पहुंचे. जहां उन्होंने पंच कल्याणक महोत्सव में आचार्य वर्द्धमान सागर महाराज का आशीर्वाद भी लिया. माना जा रहा है कि मेवाड़ में वर्षों का सूखा खत्म करने के इरादे से खुद गहलोत जमीन पर उतर गए हैं. दरअसल, मुख्यमंत्री का पिछले 12 महीनों में यह 18वां दौरा है. कटारिया के असम जाने के बाद से गहलोत ने मेवाड़ में अपने दौरे बढ़ाकर प्रचार की कोशिश भी काफी तेज कर दी है.

जानकार बताते है कि गहलोत जानते है कटारिया के जाने के बाद मेवाड़ में उनकी जितनी बारीक समझ का नेता कोई नहीं है. बीजेपी ने प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी को बनाया हो, मगर फिलहाल उनके लिए भी सबकुछ इतना आसान नहीं है. ऐसे में कांग्रेस के लिए यह मौके की तरह हो सकता है.  

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दरअसल, उदयपुर जिले में 8 में से 3 सामान्य सीटें में है. जिसमें सबसे हॉट उदयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र को माना जाता है. जहां अब तक कटारिया का दबदबा रहा है. 2011 की जनगणना के अनुसार इस विधानसभा की कुल आबादी 3,75,860 है. आबादी के लिहाज से जैन बहुल उदयपुर नगर विधानसभा सीट पर ब्रह्मण दूसरे स्थान पर हैं. वहीं, कुल जनसंख्या की 10.96 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 4.53 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति है.

करीबी नेता को लॉन्च करने की तैयारी में है गहलोत!
ऐसे में मेवाड़ की सबसे हॉट सीट माने जाने वाली उदयपुर शहर में भी नए समीकरण देखने को मिल सकते हैं. सियासी तौर पर निर्णायक भूमिका निभाने वाले जैन समाज को साधने की कोशिश के साथ ही गहलोत अपने सबसे करीबी नेता के लिए दांव लगाते भी नजर आ रहे हैं. कई स्थानीय दावेदार के बीच एक चर्चा डूंगरपुर जिलाध्यक्ष दिनेश खोड़निया दिनेश खोड़निया को लेकर भी है. यानी मेवाड़ को साधने के साथ ही अपने खास नेता को लॉन्च करने के इरादे से गहलोत एक तीर से दो निशाने साधते नजर आ रहे हैं. जिसके बाद से ही टिकिट की ख्वाहिश रखने वाले कांग्रेस के स्थानीय नेताओं में खलबली मच गई है.

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मेवाड़ से राह होगी आसान?
असल में इन दौरों की सियासत के पीछे सिर्फ कटारिया का उदयपुर से जाना मात्र ही नहीं है. गहलोत चौथी बार सीएम बनने के लिए दक्षिणी राजस्थान में भी फोकस कर रहे है. पूर्वी राजस्थान में सचिन पायलट की ज्यादा लोकप्रियता और मारवाड़ के कई इलाकों में कम होती पकड़ को देखते हुए गहलोत ने दक्षिणी राजस्थान पर ज्यादा फोकस शुरू किया है. गहलोत जानते है कि उदयपुर संभाग में पायलट के मुकाबले उनके पास विश्वनीय और समर्थक नेताओं की लंबी फौज है, ऐसे में वो आदिवासी इलाकों के साथ मेवाड़ में किसी न किसी बहाने दौरे कर रहे है.

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प्रताप जयंती के बहाने सीएम गहलोत ने मेवाड़ क्षत्रिय महासभा समेत राजपूत वर्ग को साधने की भी भरपूर कोशिश की. दिलचस्प है कि गहलोत ने जैन समाज में कटारिया की कमी को भुनाने की कोशिश की. दूसरी ओर, महाराणा प्रताप को लेकर कटारिया की विवादित टिपण्णी से नाराज चल रहे मेवाड़ क्षत्रिय महासभा का भी साध पाने की कोशिश लगातार सीएम कर रहे हैं.

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