महज 60 घंटे में बनकर तैयार हो गई थी राजस्थान की ये खूबसूरत इमारत, मोहम्मद गौरी से जुड़ा है इतिहास

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राजस्थान का नाम खयाल में आते ही इसकी अनोखी विरासत और सांस्कृतिक धरोहरें ध्यान में आने लगती हैं. यहां कई ऐतिहासिक किले, मंदिर-मजार और गगनचुम्बी इमारते हैं जिनको देखने के लिए पर्यटक खिंचे चले आते हैं. लेकिन, आज हम राजस्थान के किलों और प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों (Rajasthan tourist places) की बात नहीं कर रहें हैं. आज हम आपको बताने जा रहे हैं शहरों की भीड़-भाड़ और चकाचौंध से दूर एक 800 साल पुरानी इमारत के बारे में. 

अजमेर (Ajmer News) जिले में अढाई दिन का झोपड़ा (adhai din ka jhonpra) भारतीय मुस्लिम वास्तुकला का एक नायाब उदाहरण है. असल में यह कोई झोपड़ा नहीं बल्कि, एक मस्जिद है. इसे अढाई दिन का झोपड़ा क्यों कहा जाता है, इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प और हैरत अंगेज है.

महज 60 घंटों में बनकर तैयार हो गई थी ये इमारत

अढाई दिन के झोपड़े का निर्माण 1192 में अफगान के सेनापति मोहम्मद गौरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था. ऐसा कहा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण केवल 60 घंटों में हुआ था. यही वजह है कि इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है. यह बहुत ही खूबसूरत और आलौकिक जगह है जहां आपको वास्तुकला, इस्लामिक इतिहास और धार्मिकता का रोचक संगम देखने को मिलेगा. 

इतिहास को लेकर अक्सर होता है विवाद

इस इमारत का इतिहास काफी विवादास्पद है जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे. इस मस्जिद के बाई तरफ एक शिलालेख है जिस पर लिखा है कि इसकी जगह पहले संस्कृत स्कूल हुआ करता था, जिसे तोड़ कर मस्जिद का निर्माण किया. विश्व हिंदू परिषद के कई नेताओं का भी यही मानना है. वहीं जैन भिक्षुओं का मानना है कि इस जगह संस्कृत स्कूल से पहले जैन मंदिर था.

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स्कूल तोड़ने की ये थी ये वजह

अफगान सेनापति मोहम्मद गौरी बड़ा क्रूर इस्लामिक शासक था. ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी भारत में इस्लामिक शासन चाहता था और हिंदुओं से नफरत करता था. इसलिए गौरी को जहां भी मंदिर दिखाई पड़ते वो उन्हें खण्डित कर देता या इस्लामिक ढांचा खड़ा कर देता था. माना जाता है कि मोहम्मद गौरी अनपढ़ था और संस्कृत स्कूल में बच्चों को पढ़ाई करते देख उसने स्कूल और मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया था. 

मस्जिद में बने खम्भों से दिखती है मंदिर की झलक

अढाई दिन का झोपड़ा में 70 खम्भे हैं. इन पर बेहद ही शानदार नक्काशी की गई है, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है. हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है कि इस मस्जिद में बने सभी खंभे जैन मंदिर के हैं जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई है. खम्भों को गौर से देखने पर वे इस्लामिक नजर नहीं आते. बेशक आज ये इमारत मस्जिद है लेकिन अंदर से ये आज भी मंदिर जैसी दिखाई पड़ती है. 

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कैसे पहुंचे ढाई दिन का झोपड़ा?

अढाई दिन के झोपड़े को देखने के लिए फ्लाइट, ट्रेन और बस तीनों विकल्प मौजूद हैं. हालांकि, अजमेर में कोई एयरपोर्ट नहीं है. यदि आप हवाई यात्रा के शौकीन हैं तो आपको अजमेर से 130 किलोमीटर दूर जयपुर स्थित सांगानेर एयरपोर्ट पर उतरना होगा. यहां से उतरकर आप टैक्सी या बस ले सकते हैं. ट्रेन की यात्रा से भी आप अढाई दिन का झोपड़ा पहुंच सकते हैं. इसके लिए आपको अजमेर रेलवे स्टेशन पर उतरना होगा और यहां से बस या टैक्सी ले सकते हैं. सड़क मार्ग की कनेक्टिविटी अजमेर से दिल्ली, जयपुर और कोटा तक है.

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अगर आप अढाई दिन का झोपड़ा देखने अजमेर जाएं तो आप इसके साथ ख्वाजा मुईन-उद-दीन चिश्ती की दरगाह,अजमेर शरीफ, स्वर्ण जैन मंदिर, ब्रह्मा जी का मंदिर और पुष्कर झील के साथ पहाड़ी की ढलान में बने तारागढ़ किले को भी देख सकते हैं.

कंटेंट: राजस्थान तक के लिए इंटर्न कर रहे मुकेश कुमार की स्टोरी

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