राजस्थान की राजनीति में मेवाड़ अहम, कटारिया के बाद वसुंधरा-पूनिया की क्या होगी रणनीति? जानें

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Rajasthan News: राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और मेवाड़ के दिग्गज नेता गुलाबचंद कटारिया को असम का राज्यपाल नियुक्त किए जाने के बाद बीजेपी में हलचल तेज हो गई है. संघ और भाजपा का गढ़ होने के साथ ही राजस्थान की सियासत में भी मेवाड़ अहम है.

साल 2018 के ट्रेंड को छोड़ दे तो मेवाड़ फतह करने वाली पार्टी को हमेशा सूबे की सत्ता हासिल हुई. वहीं, इस पूरे मेवाड़-वागड़ को बीजेपी का गढ़ कहा जाता है. हालांकि अब इस क्षेत्र में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) भी अपने पैर पसारना शुरू कर चुकी है. क्षेत्र की कुल 28 में से 16 सीटें फिलहाल बीजेपी के पास है. जबकि 9 सीट कांग्रेस के खाते में है.

जबकि बांसवाड़ा की कुशलगढ़ सीट से निर्दलीय विधायक रमिला खड़िया का समर्थन भी गहलोत सरकार के पास है. इसके अलावा भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के पास 2 सीटें है. फिलहाल बीटीपी ने भी सरकार को बाहर से समर्थन दे रखा है. ऐसे में मेवाड़-वागड़ की धुरी के तौर पर उभरे कटारिया की राजस्थान राजनीति में सक्रियता पर विराम लगने के बाद अब राजस्थान के दिग्गज नेता अपना प्रभाव बढ़ा सकते हैं. चाहे फिर नए नेता प्रतिपक्ष की बात हो या मेवाड़ की कमान अपने हाथ लेने की. प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपना प्रभाव इस क्षेत्र में नए सिरे से बढ़ाना चाहेंगे.

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कटारिया के गुट में बढ़ी चिंताएं, विरोधी भी सक्रिय
इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि कटारिया की विरासत को उनके क्षेत्र में कौन आगे बढ़ाएगा? क्योंकि जिस तरह से राज्यपाल बनने के बाद कटारिया खुद भी आश्चर्य जता रहे हैं, उससे यह तो साफ है कि राज्यपाल की लिस्ट में नाम आना उनके लिए चौंकाने वाला है. ऐसे में उनके गुट के नेताओं की भी हलचल बढ़ गई है क्योंकि कटारिया की इच्छा के विरूद्ध मेवाड़ की राजनीति में टिकट बांटे गए तो कई नेताओं को परेशानी हो सकती है.

साथ ही पूनिया गुट के नेताओं के फेहरिस्त में इस क्षेत्र से कुछ ही नाम शामिल है. जिसमें प्रमुख तौर पर भाजपा महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अलका मूंदड़ा और आपदा राहत विभाग के प्रदेश संयोजक डॉ. जिनेंद्र शास्त्री का नाम है. अब वहीं, वसुंधरा गुट की बात करें तो कभी भाजपा के साथ रहे और वल्लभगर से पूर्व विधायक रणधीर सिंह भींडर को भाजपा से बाहर होना पड़ा. जिसके बाद उन्होंने जनता सेना पार्टी बना ली. लेकिन बावजूद इसके कई मौके पर वह वसुंधरा राजे के साथ खुलकर दिखाई देते हैं. खास बात यह है कि भींडर के पार्टी से बाहर जाने के पीछे वजह उनकी और कटारिया की चली आ रही अदावत थी. ऐसे में कटारिया के जाने से मेवाड़ में उनके लिए रास्ता खुल सकता है.

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राजसमन्द, चित्तौड़ और प्रतापगढ़ में वसुंधरा गुट को मिल सकता है मौका!
उदयपुर ही नहीं बल्कि पूरे मेवाड़-वागड़ क्षेत्र में सियासी समीकरण बदल सकते हैं. राजसमंद, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर में कई नेताओं को मौका मिल सकता है. दरअसल, वसुंधरा राजे की खास रही और भाजपा की दिग्गज नेता रही दिवगंत किरण माहेश्वरी की पुत्री दीप्ति माहेश्वरी राजसमन्द जिले की शहर सीट से विधायक है. माहेश्वरी परिवार और कटारिया के बीच राजनीतिक अदावत कई बार देखी गई. इधर, प्रतापगढ़ से पूर्व कैबिनेट मंत्री नंदलाल मीणा तो खुलकर कटारिया के खिलाफ बयान देते रहे हैं. चित्तौड़ से विधायक और पूर्व यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी जैसे कई नेता भी महारानी के खास माने जाते हैं, जिन्हें क्षेत्र में कटारिया के वर्चस्व का भी सामना करना पड़ता है. ऐसे में इन नेताओं के जरिए पूर्व सीएम राजे को मेवाड़ में मौका मिल सकता है.

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