अजमेर: ख्वाजा चिश्ती की दरगाह पर मनाया गया बंसतोत्सव, जानिए इसके शुरू होने की रोचक कहानी

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Ajmer: राजस्थान के अजमेर में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर बसंतोत्सव मनाया गया. ख्वाजा के दर पर शाही कव्वाल असरार हुसैन व चौकी के सदस्य गरीब नवाज की मजार पर बसंत का गुलदस्ता पेश कर और सांप्रदायिक सद्भाव की मजबूती और कौमी एकता को बढ़ावा देने का सन्देश दिया. दरगाह पर इस ख़ास दिन पूरे मुल्क में अमन चैन खुशहाली के लिए दुआ की गई.

दरगाह के निजाम गेट से शाही कव्वाल असरार हुसैन और उनके साथी बसंत का गुलदस्ता लेकर दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेदीन अली खान की सदारत में जुलूस के रूप में कव्वाली गाते हुए आस्ताना शरीफ पहुंचे. जहां ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर बसन्त का गुलदस्ता पेश किया.

अख्तर हुसैन ने बताया कि अमीर खुसरो के समय से यह बसंत पर की जा रही है. निजामुद्दीन महबूब-ए-इलाही के भांजे का इंतकाल होने के बाद वह अपने हुजरे में जाकर बैठ गए थे. अमीर खुसरो निजामुद्दीन महमूद-ए-इलाही के मुरीद थे. कुछ औरतें सरसों के फूल लेकर कुछ गाती हुई आ रही थी. अमीर खुसरो ने सोचा कि उन्हें कैसे खुश किया जाए तो वह सरसों के फूल लेकर उनको पेश किया तो वह बहुत ही ज्यादा खुश हुए. यह परंपरा जब से ही चली आ रही है.

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दरगाह के निजाम गेट से बसंत का जुलूस शाही कव्वाल स्वर्गीय असरार हुसैन के पुत्र अख्तर हुसैन वगैरहे ने अमीर खुसरो के वसंत के कलाम गाकर शुरू किया. अधिकांश लोग इस कार्यक्रम में बसंती रंग का लिबास या दुपट्टा ओढ़कर शामिल हुए. शाही कव्वालों ने सरसों व अन्य बसंती रंगों के फूलों से बना गुलदस्ता ख्वाजा साहब के आस्ताने में पेश किया और दुआ मांगी.

कव्वाल अख्तर हुसैन के अनुसार यह कार्यक्रम प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दो दिन बाद उर्दू कैलेंडर की 5 तारीख को इसी तरह मनाया जाता है. बंसतोत्सव पर लगातार तीन साल से सुखद संयोग बन रहा है, जानकारी के अनुसार बसंत लगातार 3 सालों से उर्स के दौरान आ रहा है लेकिन आगामी उर्स के समय बसंत पेश नहीं होगा क्योंकि 2024 का उर्स 10 दिन पहले आएगा.

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