पत्नी से 10 रुपए लेकर लड़ा था पहला चुनाव, थानेदार की नौकरी छोड़ मुख्यमंत्री बने थे भैरोंसिंह शेखावत
Siasi Kisse: सीकर जिले के खाचरियावास गांव के एक सामान्य परिवार में पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत का जन्म हुआ. इनके पिता टीचर थे. ग्रामीण परिवेश से जुड़े शेखावत का लालन-पालन सामान्य परिवारों की तरह हुआ. पढ़ाई पूरी करने के बाद पुलिस में नौकरी मिल गई. लेकिन ज्यादा दिन नौकरी कर पाए. करीब 5-6 साल […]
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Siasi Kisse: सीकर जिले के खाचरियावास गांव के एक सामान्य परिवार में पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत का जन्म हुआ. इनके पिता टीचर थे. ग्रामीण परिवेश से जुड़े शेखावत का लालन-पालन सामान्य परिवारों की तरह हुआ. पढ़ाई पूरी करने के बाद पुलिस में नौकरी मिल गई. लेकिन ज्यादा दिन नौकरी कर पाए. करीब 5-6 साल पुलिस की नौकरी करने के बाद उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ दी. इसके बाद में वह खेती के काम में लग गए. शेखावत के बड़े भाई को चुनाव लड़ने का ऑफर मिला लेकिन उन्होंने अपने भाई को आगे कर दिया. आगे चलकर शेखावत राजस्थान की राजनीति में बड़े नेताओं में शुमार हो गए. प्रदेश की जनता शेखावत को प्यार से बाबोसा कहकर बुलाती है. भैरोंसिंह शेखावत राजस्थान के तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं. उसके बाद वह देश के 11वें उपराष्ट्रपति बने.
पुलिस की नौकरी छोड़ी
भैरों सिंह शेखावत को पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी मिल गई थी. पिता की मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए शेखावत को पुलिस की नौकरी ज्वॉइन करनी पड़ी. नौकरी दिलाने में पुलिस सुपरिटेडेंट ठाकुर जयसिंह ने मदद की. केवल 5 से 6 साल नौकरी करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर खेती करना शुरू दिया. नौकरी को लेकर कई धारणाएं है कि इनको नौकरी से निकाला गया. लेकिन एक टीवी को दिए इंटरव्यू शेखावत ने इस बात से इनकार किया थी कि उनकी इंक्वायरी चल रही है इसलिए उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी थी.
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पहले चुनाव लड़ने की कहानी
शेखावत नौकरी छोड़ने के बाद गांव में आकर खेती बाड़ी करने लगे थे. शेखावत के छोटे भाई बिशन सिंह सीकर में नौकरी पूरी करके स्कूल में टीचर की नौकरी लग गए. बिशन सिंह संघ से जुड़े थे. संध से जुड़े होने के कारण इनकी दोस्ती लाल कृष्ण आडवाणी से थी. एक दिन वह घर आए. उस समय आडवाणी राजस्थान में संघ का कार्य देखते थे. पूरे देश में 1952 को पहली बार चुनाव होने थे. ऐसे में दोस्ती निभाते हुए आडवाणी ने बिशन शर्मा को चुनाव लड़ने का ऑफर दिया. लेकिन उन्होंने नौकरी का हवाला देते हुए चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. और अपने भाई शेखावत को चुनाव लड़ाने के लिए आगे कर दिया. चुनाव हुए और शेखावत 99,972 वोट पाकर पहली बार विधायक बन गए.
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पत्नी से 10 रुपए लेकर लड़ा था चुनाव
देश में आजादी के बाद पहली बार चुनाव हो रहे थे. भैरों सिंह शेखावत ने चुनाव लड़ने की तैयारियां कर ली थी. भैरों सिंह शेखावत चुनाव प्रचार के दौरान एक अखबार की लेकर घूमते थे. लोगों को वह अखबार में छपी अपनी तस्वीरें दिखाते थे. इससे लोगों पर उनकी छवि को लेकर पॉजिटिव असर पड़ा. शेखावत अखबार की भूमिका के बारे में कई बार जिक्र कर यह बातें बता चुके हैं. शेखावत ने चुनाव लड़ने का मन तो बना लिया था लेकिन उनके पास पैसे नहीं थे. इसके लिए शेखावत ने अपनी पत्नी से मदद मांगी थी. वे अपनी पत्नी से 10 रुपए उधार लेकर सीकर पहुंचे थे और उसके बाद पर्चा दाखिल किया था. महीने भरे चले चुनाव के बाद जब परिणाम आए तो वह भारी मतों से चुनाव जीत गए. शेखावत के इस चुनाव में सिर्फ 38 रुपए खर्च हुए थे.
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