Rajasthan assembly election 2023: ना गहलोत ना ही पायलट, बिना चेहरे के चुनाव लड़ेगी कांग्रेस! जानें

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Rajasthan News: राजस्थान में साल 2018 में सरकार बनने के बाद फेस वॉर जारी है. हालांकि भारत जोड़ो यात्रा से पहले अलाकमान के सख्त निर्देश के बाद अब बयानबाजी थम चुकी है. इस बीच कांग्रेस को हिमाचल में भी मिली बड़ी सफलता के बाद राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी सियासी कयास लगाए जा रहे हैं. माना जा रहा है कि पार्टी उन दांव-पेंच का इस्तेमाल राजस्थान में कर भी सकती हैं. विश्लेषकों की मानें तो अगर पार्टी हिमाचल के ‘NO Face’ के सिद्धांत को लागू करती है तो यहां मसला खत्म हो सकता है.

क्योंकि राहुल गांधी के बताए गए दो असेट गहलोत और पायलट में किसे आगे किया जाए? यह कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है. दूसरी ओर हिमाचल में कांग्रेस ने बिना चेहरे के चुनाव लड़ा. बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसे स्थानीय मुद्दों के दम पर कांग्रेस मैदान में उतरी. 

पायलट चेहरा तो क्या फायदा?
राजस्थान में गुर्जर वोटर करीब 6 फीसदी है. कांग्रेस नेता सचिन पायलट गुर्जर समाज से ही आते हैं. करौली, सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, भरतपुर, दौसा, कोटा, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूंदी, झुंझनू और अजमेर की करीब 35 से 40 सीटों पर गुर्जर वोटरों का प्रभाव है. ऐसे में पायलट इस वोट को प्रभावित कर सकते हैं.

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गहलोत का अनुभव आएगा काम?
दूसरी ओर गहलोत कांग्रेस में खुद को सर्वमान्य नेता के तौर पर पेश कर चुके हैं. चिरंजीवी योजना हो या ओपीएस स्कीम, हर योजना के जरिए उन्होंने अपनी जनकल्याणकारी छवि को पेश किया हैं. खुद राहुल गांधी ने भी प्रेस कांफ्रेंस के दौरान खुलकर तारीफ की. ऐसे में गहलोत के चेहरे के बूते कांग्रेस सरकार अपनी उपलब्धियों को जनता के बीच ले जाना चाहेगी.

जयराम रमेश कर चुके है इशारा
हिमाचल चुनाव के सबक की बात इसलिए भी क्योंकि अब जयराम रमेश भी इस तरफ इशारा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि संगठन मिलकर चुनाव लड़ेगा यानी बिना चेहरे के कांग्रेस में मैदान में जाएगी. कांग्रेस महासचिव ने कहा कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा, यह बाद में देखा जाएगा. जयराम रमेश के बयान के सियासी मायनों को समझे तो कांग्रेस चेहरे पर चुनाव नहीं लड़ेंगी.

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गुजरात चुनाव में फेल हो गए चेहरे
गुजरात में कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं को आगे किया. लेकिन वहां आरोप लगे कि कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार किया गया हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली का कहना था कि गुजरात में पार्टी के नेताओं को सम्मान नहीं दिया गया. जिसकी वजह से गुजरात चुनाव में पार्टी बुरी तरह हारी.

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सामूहिक नेतृत्व का फॉर्मूला दिला सकता हैं जीत
राजस्थान और हिमाचल की परिस्थितियों में खास समानता है. दोनों ही राज्यों में कांग्रेस को गुटबाजी झेलनी पड़ी है. लेकिन हिमाचल चुनाव में कांग्रेस संगठन के बल बूते लड़ी और किसी चेहरे को प्राथमिकता नहीं दी. आलाकमान तक इस बात को बखूबी पहुंचाया गया कि बिना सीएम फेस के चुनाव लड़ना बेहतर होगा. जिसका परिणाम हिमाचल में बेहतर देखने को मिला.

मुख्यमंत्री की प्रबल दावेदार प्रतिभा सिंह को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो वहीं सुखविंदर सिंह सुक्खू को प्रचार समिति का अध्यक्ष. जबकि मुकेश अग्निहोत्री को भी अहम जिम्मेदारी दी गई. विश्लेषक की मानें तो यही फॉर्मूला राजस्थान में जीत दिला सकता है. जिसमें सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर चुनाव लड़ा जाए. पार्टी इस सामूहिक नेतृत्व के जरिए ही चुनाव लड़ने की तैयारी में है. क्योंकि इस रास्ते से ही आंतरिक कलह से बचा जा सकता है.

स्थानीय मुद्दों के भरोसे जीत सकती है कांग्रेस, राष्ट्रीय मुद्दों में फंसने से बचना होगा
हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफेसर रमेश के चौहान बताते हैं कि बीजेपी ने हिमाचल में यूनिफॉर्म सिविल कोड और वक्फ बोर्ड की जांच के मुद्दे उठाए. जबकि कांग्रेस स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रही. राजस्थान में कांग्रेस को चुनाव जीतने के लिए इन्हीं सबक पर काम करना होगा.

भाजपा के राष्ट्रीय मुद्दों और मोदी के चेहरे की राजनीति के सामने कांग्रेस स्थानीय मुद्दों से ही चुनाव जीत सकती है. चौहान सीएसडीएस के स्टेट कोऑर्डिनेटर भी हैं. उनकी मानें तो कांग्रेस ने भाजपा सरकार में बढ़ रही बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, चरमराती कानून व्यवस्था जैसे कई मुद्दों को हथियार बनाया.

ओपीएस बना गेम चेंजर, राजस्थान में मिल सकता है फायदा
वहीं, जिस ओल्ड पेंशन स्कीम पर राजस्थान में सियासत तेज हो गई है. उसका फायदा गहलोत सरकार को मिल सकता है. इसका ताजा उदाहरण हिमाचल में देखने को मिला. जहां कांग्रेस ने ओपीएस को पुरजोर तरीके से उठाया. अहम इसलिए क्योंकि हिमाचल हो राजस्थान, यहां करीब 4% मतदाता सरकारी कर्मचारी है. जिनका वोट सरकार के समीकरण बिगाड़ने या बनाने के लिए काफी है.

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि बिना चेहरे पर चुनाव लड़ने का ट्रेंड बीजेपी में सफल रहा. यूपी, गुजरात और छत्तीसगढ़ में भाजपा जबरदस्त जीत हासिल कर चुकी है. अब यहीं दांव बीजेपी में भी खेलने की तैयारी है. जिसके सियासी संकेत भी मिलने लगे हैं.

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