सरकार चली गई, लेकिन नहीं थम रही कांग्रेस के भीतर की कलह? गहलोत के लिए पायलट ने फिर अलापा पुराना राग!

राजस्थान तक

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साल 2018 से 2023 तक तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के लिए सरकार चलाना आसान नहीं था. वजह 2018 के विधानसभा चुनाव में 99 सीटों पर कांग्रेस की जीत से पैदा हुई मुसीबत नहीं थी. बल्कि परेशानी थी उस नेता की बगावत, जिसके बूते पार्टी ने विपक्ष में रहते हुए चुनावी प्रचार को धार दी और सत्ता के दरवाजे पर आकर रूक गई. प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन मुखिया सचिन पायलट, जो सरकार का हिस्सा भी रहे थे.

उनकी गहलोत से अदावत के चलते सरकार के लिए अस्थिरता पैदा हो चुकी थी. जिसके बाद मानेसर एपिसोड के दौरान साल 2020 में पूरे प्रदेश ने पूर्व डिप्टी सीएम पायलट समेत पार्टी के 19 विधायकों की बगावत भी देखी. और यहीं से शुरू हुआ कांग्रेस के भीतर गहलोत VS पायलट का एपिसोड. पूरे 5 साल पायलट खेमा अपने नेता के लिए कुर्सी की आस में टकटकी लगाए बैठा रहा तो दूसरी ओक पूर्व सीएम गहलोत कुर्सी बचाने में लगे रहे.

इस पूरी कवायद के चलते साल 2023 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस हार गई और एक बार फिर बीजेपी सरकार की वापसी का रास्ता खुल गया. लेकिन विपक्ष में होने के बावजूद कांग्रेस के भीतर गहलोत बनाम पायलट की इस लड़ाई का अंत होता नहीं दिख रहा है. गहलोत को लेकर पायलट के वहीं तेवर बरकरार है. हालांकि पायलट अब गहलोत का नाम तो नहीं ले रहे, लेकिन गाहे-बगाहे ही गहलोत के लिए बहुत कुछ कह जा रहे हैं. 

 

 

पेपर लीक के बहाने गहलोत को घेरा!

बीतें 25 जुलाई को एनएसयूआई के नए प्रदेश अध्यक्ष विनोद जाखड़ के पदभार ग्रहण समारोह में पायलट के साथ नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा भी मौजूद थे. तब पायलट ने कहा कि जिसने आपके लिए मेहनत की, आपके साथ खड़ा रहा, दोस्तों कुर्सी और पद मिलने के बाद उसे भूल गए तो उसकी बद्दुआ जरूर लगेगी. यहीं नहीं, इस दौरान उन्होंने एक और पुराना राग अलापा. कांग्रेस नेता ने पेपर लीक पर बोलते हुए कहा कि आज भी मैं उस स्टैंड पर कायम हूं, जिस पर पहले था. आगे बोलते हुए कहा कि हर गलती सजा मांगती है. 

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