आजादी के बाद से ही राजस्थान कांग्रेस में फेस वॉर? जानें हीरालाल शास्त्री के CM बनने की कहानी
Siasi Kisse: आजादी से अब तक कांग्रेस ने राजस्थान में करीब 6 दशक तक राज किया. इस दौरान कई बार अंदरूनी कलह और चुनौतियां भी देखने की मिलीं. गांधी परिवार के खास कहे जाने वाले अशोक गहलोत गुट के विधायकों की बगावत ने 25 सितंबर को कांग्रेस के इतिहास में एक अलग अध्याय लिख दिया. […]
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Siasi Kisse: आजादी से अब तक कांग्रेस ने राजस्थान में करीब 6 दशक तक राज किया. इस दौरान कई बार अंदरूनी कलह और चुनौतियां भी देखने की मिलीं. गांधी परिवार के खास कहे जाने वाले अशोक गहलोत गुट के विधायकों की बगावत ने 25 सितंबर को कांग्रेस के इतिहास में एक अलग अध्याय लिख दिया. पायलट-गहलोत के विवाद ने पिछले 4 वर्षों में जमकर सुर्खियां भी बटोरी.
देखा जाए तो ऐसा पहली बार नहीं है जब राजस्थान को लेकर आलाकमान के सामने ऐसी दुविधा रही हो. प्रदेश कांग्रेस में फेस वार की शुरूआत तो आजादी के बाद ही हो गई थी. तब न तो सियासत में फेस वार जैसे शब्द प्रचलित थे और न ही इस तरह की बयानबाजियों का दौर था.
ये बात तब की है जब राजपूताना की 22 रियासतों के एकीकरण के बाद राजस्थान का गठन हुआ. तब कांग्रेस में 4 बड़े नेताओं की भूमिका अहम हो गई. ये चार नेता थे लोकनायक जयनारायण व्यास, माणिक्य लाल वर्मा, गोकुल भाई भट्ट और पंडित हीरालाल शास्त्री. उस वक्त इनकी भूमिका हमेशा राजस्थान कांग्रेस में अहम रही.
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तब देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और गृहमंत्री सरदार पटेल के सामने ये चारों नेता चुनौती बनकर उभरे थे. बताया जाता है कि उस वक्त भी आलाकमान के लिए ये तय कर पाना मुश्किल हो गया था किसके हाथों में मरुधरा का नेतृत्व सौंपा जाए . तब ये चारों नेता राजस्थान की राजनीति के लिए वैसे ही अहम थे जैसे आज गहलोत और पायलट हैं. आलाकमान कह भी चुका है कि दोनों असेट हैं. फिर ऐसे हुआ फैसला…
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फिर शुरू हो गई थी सियासी खींचतान
इन चारों नेताओं के बूते चल रही राजस्थान कांग्रेस में गुटबाजी की भी चर्चा रही. प्रदेश के विलय के बाद कांग्रेस में कई मुद्दों को लेकर आपसी सहमति तो बनी, लेकिन एक मुद्दा था जिसने हमेशा कांग्रेस को परेशान किया, वह था मुख्यमंत्री का पद. आजादी के बाद राजस्थान की कुर्सी पर सबसे पहले काबिज होने के लिए लंबी लड़ाई चली. जिसपर ये दिग्गज नेता एकजुट नहीं थे. जिसे लेकर रियासतों के प्रजामंडल के नेताओं, रियासतों के तत्कालीन प्रधानमंत्रियों और केन्द्रीय नेताओं के बीच हमेशा मतभेद दिखाई दिया.
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पटेल के खास शास्त्री बने सीएम
तब जिसने बाजी मारी वह थे हीरालाल शास्त्री. शंकर सहाय सक्सेना की किताब ‘जो देश के लिए जिए’ के अनुसार पीसीसी चीफ गोकुल भाई भट्ट ने भी सीएम पद के लिए हीरालाल शास्त्री के नाम पर सहमति जताई. खास बात यह भी थी कि शास्त्री सरदार पटेल के करीबी कहे जाते थे. जिसके चलते राजस्थान रियासतों के एकीकरण के बाद 7 अप्रेल 1949 को हीरालाल शास्त्री को प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया.
वर्मा-गोकुल भाई भट्ट की गुटबाजी में शास्त्री को गंवानी पड़ी कुर्सी
कुछ समय बाद ही प्रदेश कांग्रेस में पीसीसी चीफ गोकुल भाई भट्ट के गुट को मेवाड़ के किसान नेता माणिक्यलाल वर्मा ने चुनौती दी. इन दोनों नेताओं के विवाद का खामियाजा हीरालाल शास्त्री को 21 महीने के भीतर ही कुर्सी गंवाकर उठाना पड़ा. पद खाली होने के बाद जनवरी 1951 को आईसीएस अधिकारी सीएस वेंकटाचारी को अप्रैल 1951 तक राजस्थान का मुखिया बनाया गया. जिसके बाद वर्मा गुट के जयनारायण व्यास ने राजस्थान के विधायकों का समर्थन दिखाकर आलाकमान को अपना फैसला बदलने पर विवश कर दिया. 26 अप्रैल 1952 को उन्हें सूबे की कमान मिली.
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