Nagaur: 101 साल की उम्र में कर्नल राठौड़ की मौत, 1965 में पाकिस्तान की चौकियों पर किया था कब्जा

Kesh Ram

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Nagaur: 101 साल की उम्र में कर्नल राठौड़ की मौत, 1965 में पाकिस्तान की चौकियों पर किया था कब्जा
Nagaur: 101 साल की उम्र में कर्नल राठौड़ की मौत, 1965 में पाकिस्तान की चौकियों पर किया था कब्जा
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Nagaur: नागौर जिले के खजवाना के सेनणी गांव का रहने वाले शतायु कर्नल शिवजीत सिंह राठौड़ ने रविवार को अपने पैतृक गांव में अंतिम सांस ली. वह करीब 101 वर्ष के होकर रविवार को इस संसार को अलविदा कह गए. उन्होंने विश्व युद्ध सहित अन्य कई श्रेणियों में दुश्मनों से लोहा लिया था. कर्नल राठौड़ की लगातार चार पीढ़ियां भारतीय सेना में ऑफिसर के रूप में अपनी सेवाएं देती रही है. सोमवार शाम को कर्नल राठौड़ का उनके पैतृक गांव से सैनणी में अंतिम संस्कार होगा. जैसे ही उनके निधन का समाचार गांव में फैला तो पूरे क्षेत्र में शोक की लहर छा गई.

प्रथम विश्व युद्ध में पिता दूसरे विश्व युद्ध में खुद ने दुश्मनों से लड़ी जंग

सेनणी गांव का रहने वाले शतायु कर्नल शिवजीत सिंह राठौड़ का जन्म वर्ष 1922 को हुआ. उनके पिता भी सेना में ऑफिसर थे और प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेते हुए अदम्य साहस का परिचय देकर इजरायल के हाइफा शहर में ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी थी. वहीं कर्नल राठौड़ ने द्वितीय विश्वयुद्ध में ईरान, इराक, मिश्र व सीरिया जैसे देशों में ब्रिटिश सरकार की ओर से लड़ाई लड़ी. इसी के साथ अन्य सैन्य में भी लड़ाई लड़ी और दुश्मनों के लोहा लिया

1965 में भारत पाक युद्ध में पाक की चौकियों पर किया कब्जा

राठौड़ ने सन 1965 के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध में राज चंदे वाला चौकी पर कमांडिंग लेफ्टिनेंट के पद पर रहते हुए पाकिस्तानी सेना को खदेड़ था. और पाकिस्तान की चौकियों पर कब्जा जमा लिया था. जिसके लिए कर्नल की यूनिट को भारत सरकार ने दो वीर चक्र सेना मेडल तथा पांच वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में कर्नल ने नसीराबाद से सेंट्रल कमांडेड के रूप में अपनी सेवाएं दी. उसके बाद 1967 से लेकर 1972 तक नसीराबाद सेना भर्ती बोर्ड में सेवा देते हुए हजारों युवाओं को सैन्य प्रशिक्षण दिया गया.

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कर्नल राठौड़ की 1914 में कराची में हुई थी पहली पोस्टिंग

कर्नल राठौर की 1914 में कोटा उमेद इन्फेंट्री रेजीमेंट में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हुए थे. सन 1942 में कराची पाकिस्तान में तैनात हुए. इसी रेजीमेंट से ड्यूटी करते हुए विश्व युद्ध में भाग लिया तथा इराक, ईरान, मिश्र, अल्लेपो, हमा, होम्स, सीरिया जैसे अनेक महत्वपूर्ण इलाकों में अपनी सेवाएं देते रहे.

आजादी के बाद राष्ट्रपति की सुरक्षा यूनिट के रहे प्रमुख अधिकारी

सन 1946 में वापस भारत लौटे और 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद 1950 में हुए पाकिस्तान के आक्रमण के समय करनाल में पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर में अनेक जगह पर अद्भुत रण कौशल का परिचय दिया. उसके बाद 1962 में भारत चीन के युद्ध के समय अरुणाचल प्रदेश में तैनाती के बाद विषम परिस्थितियों में भारतीय सेना की चौकियों को बचाया. 1965 में राष्ट्रपति भवन में सुरक्षा यूनिट के मुख्य कमांडिंग अधिकारी के रूप में तैनात रहे.

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