राजस्थान में 46 साल पहले ही भैरोंसिंह शेखावत ने लागू कर दी थी शराबबंदी, लेकिन हार गए अगला चुनाव
Siasi Kisse: शराबबंदी पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहस तेज हुई. गुजरात मॉडल के बाद साल 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू हुई. इस फैसले को लेना राज्य सरकार के लिए इसलिए भी चुनौती मानी जाती है, क्योंकि कभी शराब को राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की संज्ञा दी जाती है तो कभी शराब […]
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Siasi Kisse: शराबबंदी पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहस तेज हुई. गुजरात मॉडल के बाद साल 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू हुई. इस फैसले को लेना राज्य सरकार के लिए इसलिए भी चुनौती मानी जाती है, क्योंकि कभी शराब को राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की संज्ञा दी जाती है तो कभी शराब को सरकार के लिए आर्थिक संकटमोचक. ऐसा नहीं है कि सिर्फ गुजरात-बिहार तक ही यह बहस सीमित रही.
राजस्थान में भी शराबबंदी लागू हुई, वह भी आज से करीब 46 साल पहले. हालांकि फिर यह फैसला कुछ ही समय में वापस ले लिया गया. दिलचस्प बात यह है कि ब विपक्ष के नेता ने मांग उठाई तो तत्कालीन मुख्यमंत्री ने शराबबंदी का फैसला ले लिया. तब हर व्यक्ति शराबबंदी से सहमति जताता था. लेकिन शराबबंदी करने वाले इस मुख्यमंत्री को सत्ता फिर से हासिल नहीं हुई. यह है किस्सा है बाबोसा कहे जाने वाले राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत का.
साल 1977 में जब राजस्थान की सत्ता भैरोंसिंह शेखावत के हाथ थी. तब दिग्गज नेता और कभी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे गोकुलभाई भट्ट ने शराबबंदी की मांग उठा दी. तब प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार थी. राजस्थान के गांधी कहे जाने वाले भट्ट ने सीएम हाउस के बाहर ही अनशन कर दिया. उनकी इस मांग को शेखावत ने काफी तवज्जो भी दी और प्रदेश में शराबबंदी का फैसला लागू किया. हालांकि अन्तर्विरोधों से जनता पार्टी टूट गई. साल 1980 में जब भाजपा का गठन हुआ तो शेखावत भाजपा के चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरे. लेकिन प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी. भाजपा प्रदेश मीडिया प्रकोष्ठ के पूर्व सदस्य विजय प्रकाश विप्लवी बताते हैं कि यदि उस चुनाव में शराबबंदी को जनसमर्थन मिला होता तो आज स्थिति अलग होती. हालांकि उस हार की बड़ी वजह थी जनता पार्टी की टूट, जिससे जनता के मन में अविश्वास पैदा हुआ था.
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उपराष्ट्रपति बने तो गहलोत ने उनके सम्मान में रखा भोज
गरीब परिवार में जन्मे इस राजनेता का बचपन काफी संघर्षपूर्ण रहा. शेखावत को जोड़-तोड़ की राजनीति में माहिल खिलाड़ी माना जाता था. ना सिर्फ राजस्थान में भाजपा की जड़े मजबूत की, बल्कि सूबे में तीन बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी काबिज हुई. प्रदेश ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी उन्हें महारथ हासिल थी. सीकर जिले के खाचरियावास गांव के एक सामान्य परिवार में पूर्व मुख्यमंत्री भैरों सिंह शेखावत का जन्म हुआ. ग्रामीण परिवेश से जुड़े शेखावत का लालन-पालन सामान्य परिवारों की तरह हुआ. पढ़ाई पूरी करने के बाद पुलिस में नौकरी मिल गई. लेकिन ज्यादा दिन नौकरी कर पाए. करीब 5-6 साल पुलिस की नौकरी करने के बाद उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़ दी. इसके बाद में वह खेती के काम में लग गए. शेखावत के बड़े भाई को चुनाव लड़ने का ऑफर मिला लेकिन उन्होंने अपने भाई को आगे कर दिया.
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जब भी भाजपा में राष्ट्रीय स्तर पर रस्साकस्सी तेज हुई तो संकटमोचक के रूप में बाबोसा ही याद आते थे. चाहे फिर गुजरात हो या दिल्ली, हर मामलों में इन्होंने पार्टी को संकट से उबारने में अहम भूमिका निभाई. आगे चलकर शेखावत राजस्थान की राजनीति में बड़े नेताओं में शुमार हो गए. जब वे भारत के उपराष्ट्रपति बने तो उस वक़्त कांग्रेस के अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. उनके सम्मान में गहलोत ने भोज रखा, जिसमें कई लोगों ने शिरकत की.
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आंध्र प्रदेश-तमिलनाडु में शराबबंदी का प्रयोग हो चुका नाकाम
गौरतलब है कि देश के कई राज्यों में शराबबंदी लागू की गई है. हालांकि यह प्रयोग नाकाम ही रहा. आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में शराबबंदी लागू तो हुई, लेकिन जल्द ही इस कदम को वापस लिया गया. आंध्र में पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने यह कह कर शराबबंदी हटा दी थी कि इसे पूरी तरह लागू कर पाना संभव नहीं. वहीं, हरियाणा में शराबबंदी का फैसला 1990 के दशक के अंत में लिया गया. बंसीलाल के नेतृत्व वाली हरियाणा विकास पार्टी-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार ने जुलाई 1996 में शराबबंदी लागू की थी. हालांकि ठीक 21 महीने बाद ही इसने आर्थिक और कानूनी प्रभावों के अलावा, राजनीतिक नुकसान के कारण अप्रैल 1998 में शराबबंदी हटाने का फैसला किया. जबकि इसे लागू करने हुए बंसीलाल ने कहा था कि ‘मैं शराब पर पाबंदी हटाने के बजाय घास काट लूंगा’. बाद में शराबबंदी के नियम को वापस लेने की घोषणा तत्कालीन सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता गणेशीलाल ने की.
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