वे लोक कहावतें जिनकी वजह से कभी गरमा गई थी राजस्थान की राजनीति, जानें उनकी कहानी
Siasi Kisse: राजस्थान की सियासत में लोक कहावतों का अहम रोल है. नेता मंचों से भाषण देते हुए कई बार कुछ ऐसी कहावतों को जिक्र कर जाते हैं जो चर्चा का विषय बन जाती हैं. लोक कहावतों के कारण ऐसे बयान न केवल चर्चा में रहे बल्कि उनपर सियासत भी गरमायी. दीवारों तक पर लोक कहावत […]
ADVERTISEMENT
Siasi Kisse: राजस्थान की सियासत में लोक कहावतों का अहम रोल है. नेता मंचों से भाषण देते हुए कई बार कुछ ऐसी कहावतों को जिक्र कर जाते हैं जो चर्चा का विषय बन जाती हैं. लोक कहावतों के कारण ऐसे बयान न केवल चर्चा में रहे बल्कि उनपर सियासत भी गरमायी. दीवारों तक पर लोक कहावत को लिखा गया. सोशल मीडिया पर चर्चा के साथ ये ट्रोल भी हुई. लोगों ने इंटरनेट पर इन कहावतों के अर्थ को सर्च किया, इसके पीछे की कहानी को भी जानने की कोशिश की. सियासी किस्से की सीरीज में हम सियासी रंग ओढ़ चुकीं कुछ लोक कहावत और उनके पीछे की कहानी का जिक्र कर रहे हैं.
इन कहावतों को राजस्थान की राजनीति में चर्चा का केंद्र बनाने के लिए अगर किसी एक नेता का नाम सबसे पहले आता है तो वह हैं गोविंद सिंह डोटासरा. उनकी कही गई कहावतें इतनी रोचक होती है कि न केवल राजस्थान बल्कि देशभर के लोग उनका अर्थ ढूंढने में लग जाते हैं. उनके नाम से मीम्स बनने लग जाते है. राजस्थान की राजनीति की चर्चा हो और लोक कहावतों की बात न हो ऐसा भला कैसे हो सकता है.
‘नाथी का बाड़ा’ पर गर्म हुई सियासत
ये एक ऐसी कहावत है जिसकी राजस्थान की फिजाओं में पिछले 5 साल में सबसे ज्यादा चर्चा की गई. जिस पर सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा मीम्स बने. दरअसल, अप्रैल 2021 में राजस्थान के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने आवास पर ज्ञापन देने आए कुछ शिक्षकों को यह कहते हुए भगा दिया था कि ‘आपने मेरे घर को नाथी का बाड़ा समझ रखा है क्या’ जो जब मन चाहे आ गए? इसके बाद से सोशल मीडिया पर नाथी का बाड़ा ट्रेंड करने लगा. देशभर से लोग गूगल सर्च करके इस कहावत का अर्थ ढूंढने लगे. राजनीतिक चर्चाओं में जिसे देखो उसकी जुबान पर केवल तीन शब्द थे- नाथी का बाड़ा.
ADVERTISEMENT
जानें इस लोकोक्ति की कहानी
नाथी बाई राजस्थान के पाली जिले की रोहट तहसील के गांव भांगेसर की रहने वाली थीं. करीब 100 साल पहले उनका निधन हो गया. उनके नाम पर ही इस कहावत की शुरुआत हुई. नाथी बाई के पति का नाम नरसिंह राम था. उन दिनों 3 दिन बारात रुकती थी. फेरे के दूसरे दिन नाथी बाई के पति की मौत हो गई थी. नाथी बाई ने दूसरा विवाह नहीं किया था. उनके पास 185 बीघा जमीन थी. उससे अच्छी ऊपज और बढ़िया आमदनी होती थी, जिससे वे गरीबों की मदद करती थीं. उनके बारे में कहा जाता है कि नाथी बाई का दिल इतना बड़ा था कि जरूरतमंदों को गेहूं का कमरा दिखाकर कहती कि जितना चाहिए उतना ले जाओ. जरूरतमंदों को रुपये देते समय और लेते समय वह कभी गिनती नहीं थी. जो जितने रुपये लौटाया जाता था उन्हें सहर्ष स्वीकार कर लेती थीं.
ADVERTISEMENT
भांगेसर में आज भी नाथी बाई का परिवार रहता है. गांव के तालाब किनारे नाथी बाई की समाधि बनी हुई है जहां आज भी चबूतरा बना हुआ है. इसके अलावा नाथी बाई के खेत भी हैं, जिससे होने वाली ऊपज और आमदनी से वह लोगों की मदद करती थीं. उस उदार महिला के नाम पर ही इस कहावत की शुरुआत हुई, क्योंकि नाथी का बाड़ा वह जगह थी जहां कोई भी बिना किसी रोक टोक के मदद पाने आ सकता था और कभी खाली हाथ नहीं जाता था. पर यह राजस्थान का दुर्भाग्य ही है कि इतनी उदार महिला के नाम पर बनी कहावत को राजनेताओं ने शिक्षकों के सामने तंज की तरह इस्तेमाल किया.
ADVERTISEMENT
ठठेरे की बिल्ली खुड़के से नहीं डरती
अपने पुराने डायलॉग ‘नाथी का बाड़ा’ के बाद एक बार फिर कहावत बोलकर गोविंद सिंह डोटासरा सुर्खियों में आ गए. 2 मार्च 2022 का दिन. कांग्रेस की सदस्यता अभियान की बैठक में हिस्सा लेने आए गोविंद डोटासरा को झुंझुनूं में भाजयुमो कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखा दिए. जब उनका भाषण देने का समय आया तो उन्होंने कहा कि ये 2-4 छोरे आ जाते हैं, लेकिन इन्हें नहीं पता कि ठठेरे की बिल्ली खुड़के से नहीं डरती. नाथी का बाड़ा की तरह यह कहावत भी लोगों के लिए पहेली बन गई. लोग गूगल पर इसका मतलब सर्च करने लगे. उसके बाद भी राजस्थान की राजनीति में कई बार नेताओं के द्वारा एक दूसरे पर तंज कसने के लिए इस कहावत का प्रयोग किया गया.
क्या है ‘ठठेरे की बिल्ली’ का मतलब
यह एक मारवाड़ी कहावत है. ठठेरे का मतलब बर्तन बनाने वाले से है. जहां पर बर्तन बनाए जाते हैं वहां रहने वाली बिल्लियों को उन आवाजों की आदत पड़ जाती है इसलिए वह बर्तनों की आवाजों से नहीं डरतीं. यह कहावत कहते हुए डोटासरा ने खुद को ठठेरे की बिल्ली और भाजयुमो के विरोध प्रदर्शन को खुड़के का नाम दिया. उनका कहने का मतलब था कि वे ऐसे विरोध प्रदर्शनों से नहीं डरते.
डोटासरा ने उस समय बीजेपी को चुनौती देते हुए यह भी कहा था कि उनके पास कार्यकर्ताओं की ताकत है. वे पूरे प्रदेश में हर जिले में जाएंगे. किसी में दम है तो उन्हें रोककर दिखाए. डोटासरा का व्यक्तित्व ऐसा है कि वो अपने विवादित बयानों और कहावतों के जरिए अपनी ही पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर देते हैं. हालांकि इन कहावतों के जरिए वह हमेशा चर्चा में बने रहते हैं जिसका उन्हें राजनीतिक लाभ भी मिलता है.
ADVERTISEMENT