चुनावी साल: 16 से सचिन फील्ड में तो गहलोत रिपोर्ट कार्ड की तैयारी में, इधर जयराम रमेश ने दिए ये संकेत
Rajasthan assembly election 2023: राजस्थान में साल 2023 चुनावी वर्ष है. चुनावी साल में 16 जनवरी से गहलोत सरकार अपने 4 साल के कामों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने जा रही है वहीं इस तारीख से सचिन पायलट पांच जिलों में सभाओं के जरिए फील्ड में उतर रहे हैं. इन सबके बीच कांग्रेस महासचिव जयराम […]
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Rajasthan assembly election 2023: राजस्थान में साल 2023 चुनावी वर्ष है. चुनावी साल में 16 जनवरी से गहलोत सरकार अपने 4 साल के कामों का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने जा रही है वहीं इस तारीख से सचिन पायलट पांच जिलों में सभाओं के जरिए फील्ड में उतर रहे हैं. इन सबके बीच कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने फेस वार को लेकर एक बार फिर बयान दिया है जिससे राजस्थान की कांग्रेस पार्टी में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है.
ऐसा माना जा रहा है कि एक तरफ गहलोत चार साल के कामों का ब्यौरा इकट्ठा कर आलाकमान, राजस्थान की जनता को अपने बेहतर काम का मैसेज और सदन में विपक्ष के सवालों का करारा जवाब देना चाहते हैं वहीं पायलट फील्ड में उतरकर सभाओं के जरिए शक्ति प्रदर्शन का संदेश देने की कोशिश में हैं.
सचिन पायलट पंजाब से लौटकर 16 जनवरी को नागौर, 17 को हनुमानगढ़, 18 को झुंझुनूं, 19 को पाली और 20 को जयपुर में सभा करेंगे. इन सभाओं को किसान सम्मेलन का नाम दिया गया है. इन सभाओं के ऐलान के बाद पायलट गुट के नेता और समर्थक एक्टिव हो गए हैं.
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रिपोर्ट कार्ड की तैयारी में गहलोत
इधर सीएम अशोक गहलोत 16-17 जनवरी को विभागों के प्रभारी मंत्रियों के साथ चिंतन शिविर में चर्चा करेंगे. इसमें मंत्री और विभाग के सचिव अपने काम का रिव्यू देंगे. ये देखा जाएगा कि विभाग के लिए दिया गया बजट और काम की स्थिति क्या है. इसके बाद प्रभारी मंत्री फील्ड में जाएंगे और पता लगाएंगे कि योजनओं की जमीनी हकीकत क्या है? जो चीजें कागज पर हैं क्या वे ग्राउंड पर हैं? 4 सालों में किए गए कामों का रिव्यू करने के साथ प्रभारी मंत्री फीडबैक भी लेंगे कि इसे और बेहतर कैसे किया जा सकता है.
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इन पांच जिलों में ही पायलट की महासभा क्यों?
अब सवाल ये उठ रहा है कि सचिन पायलट ने नागौर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं और पाली को ही किसान महासभा के लिए क्यों चुना है? चूंकि ये क्षेत्र जाट बहुल इलाके हैं. ये डोटासरा के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है. साल 2003 और 2013 के विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी थी. वहीं 2018 में कांग्रेस ने यहां बाजी मारी. चूंकि गहलोत डोटासरा के बूते पर इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ बनाते हैं. वहीं पायलट इस कोशिश में हैं कि गुर्जर वोट के साथ ही जाटों में भी सीधे पकड़ बने ताकि आलाकमान को ये मैसेज जाए कि उनका प्रभाव किसी एक इलाके में नहीं बल्कि कमोबेश पूरे राजस्थान में हैं.
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इधर जयराम रमेश के बयान से सरगर्मी बढ़ी
पंजाब में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक सवाल के जवाब में कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि व्यक्तियों को छोड़िए. हमारे लिए संगठन सर्वोपरि है. भारत जोड़ो यात्रा में जो एकता-अनुशासन और एकजुटता खासतौर से राजस्थान में देखने को मिला है वो विश्वास दिलाता है कि कोई न कोई रास्ता निकाला जाएगा जो संगठन के लिए फायदेमंद होगा. व्यक्तियों को छोड़िए. संगठन सर्वोपरि है. जो रास्ता खड़गे जी, रंधावा जी और सभी नेता ढूंढ निकालेंगे वो कांग्रेस को राजस्थान में मजबूत करेगा. व्यक्ति आएंगे और जाएंगे. राहुल जी ने साफ कहा है कि दोनों व्यक्ति हमारी पार्टी के लिए संपत्ति हैं.
फेस वार की चर्चा फिर तेज?
चुनावी साल में पायलट और गहलोत की अलग-अलग मोर्चे पर तैयारी और जयराम रमेश का जल्द हल निकाले जाना वाले इशारे ने एक बार फिर फेस वार की चर्चा छेड़ दी है. माना जा रहा है कि 23 जनवरी से शुरू हो रहे बजट सत्र में विपक्ष के अलावा पायलट समर्थकों का स्वर अगर गहलोत सरकार के काम-काज के खिलाफ गूंजा तो एक बार फिर राजस्थान में बयानबाजियों का दौर शुरू होगा. ध्यान देने वाली बात है कि एक तरफ जहां पायलट समर्थक उन्हें अब भी सीएम के रूप में देखना चाहते हैं वहीं गहलोत समर्थक अपने स्टैंड पर अड़े हैं. वे किसी भी सूरत में पायलट को सीएम के रूप में स्वीकारने को तैयार नहीं हैं. इन सबके बीच गहलोत गुट से मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास के वायरल ऑडियो ने उनके सीएम बनने के दावे को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है.
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