बाड़मेरः बुजुर्ग दंपत्ति ने लिया संथारा, पति ने त्यागा अन्न-जल तो पत्नी भी उसी राह पर, दर्शन करने उमड़े लोग
Barmer News: बाड़मेर में एक बुजुर्ग दंपत्ति ने एक साथ संथारा ग्रहण किया. जिसकी चर्चा समाज ही नहीं पूरे क्षेत्र में हो रही है. जिले के जसोल कस्बे के निवासी बुजुर्ग पति-पत्नी ने एक साथ इस राह पर चलने का निर्णय लिया. संथारा लिए इस दंपत्ति को 18 दिन हो चुके हैं. अन्न -जल त्याग […]
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Barmer News: बाड़मेर में एक बुजुर्ग दंपत्ति ने एक साथ संथारा ग्रहण किया. जिसकी चर्चा समाज ही नहीं पूरे क्षेत्र में हो रही है. जिले के जसोल कस्बे के निवासी बुजुर्ग पति-पत्नी ने एक साथ इस राह पर चलने का निर्णय लिया. संथारा लिए इस दंपत्ति को 18 दिन हो चुके हैं. अन्न -जल त्याग कर सिर्फ जैन धर्म के मंत्रोच्चारण और जाप सुन रहे हैं. जैन धर्म में ऐसा माना जाता है कि इंसान को जीवन के अंतिम क्षणों में अन्न-जल त्याग कर परमात्मा की भक्ति में जुट जाना चाहिए. ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके.
जानकारी के मुताबिक जसोल गांव निवासी 83 वर्षीय पुखराज संखलेचा को 7 दिसंबर को हार्ट अटैक आ गया था. जिसके बाद जोधपुर के अस्पताल में वेंटीलेटर पर इलाज चला. जब संखलेचा स्वस्थ होकर 27 दिसंबर को घर लौटे तो परिवार के लोगों और रिश्तेदारों ने बुजुर्ग का नाचते-गाते स्वागत भी किया. लेकिन इसके अगले ही दिन बुजुर्ग ने संथारा लेने का निर्णय लिया. जिसके बाद जैनमुनि सुमित ने बुजुर्ग को संथारा दिलवाया.
इससे प्रभावित होकर संखलेचा की पत्नी गुलाबी देवी ने भी संथारा ले लिया. गुलाबी देवी ने 6 जनवरी को जैनाचार्य महाश्रवण के सानिध्य में संथारा ले लिया. यह बात सुनकर बुजुर्ग दंपति के घर पर जमावड़ा है. देशभर से समाजजन इस दंपति के दर्शनों के लिए उमड़ रहें हैं. जसोल कस्बे और उसके आसपास रहने वाले जैन समाज के लोगों में संथारा प्रथा का पिछले कई दशकों से लगातार चलन देखने को मिला है. ऐसा बताया जाता है कि पिछले दो दशक में छोटे से कस्बे जसोल में कई लोगों ने संथारा लिया है.
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जानिए आखिर क्या होता है संथारा
सदियों से चली आ रही संथारा प्रथा बहुत पुरानी है. इस प्रथा को लेकर कुछ साल पहले ही पूरे देश में जबरदस्त तरीके से विरोध भी हुआ था. जिसे लेकर संथारा पर रोक लगाने की मांग भी हुई थी. तमाम दलीलों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जैन धर्म के पक्ष में निर्णय सुनाया था. जब भी कोई संथारा ग्रहण करता है तो उसके पास परिवार समाज और कस्बे के लोग दिन से लेकर रात तक लगातार जैन धर्म से जुड़े मंत्र, जाप और भजन करते नजर आते हैं. जैन धर्म में यह भी मान्यता है कि जिंदगी के आखिरी पड़ाव में मन में कोई बुरी भावना ना आए. अच्छे विचारों और संस्कारों का मन में स्थान हो. संथारा लेने के बाद उस व्यक्ति का संसार से कोई लेना-देना नहीं होता है.
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