घूमने के शौकीन लोगों के लिए खुशखबरी, अलवर में बन रहा राजस्थान का पहला अनोखा म्यूजियम
Rajasthan Tourism: हथियारों के शौकीन लोगों के लिए खुशखबरी है. अलवर के बाला किला में राजस्थान का पहला शस्त्र म्यूज़ियम बन रहा है. इसमें छोटे बड़े 550 तरह की बंदूक, तमंचा, छोटी-बड़ी तोप, तलवार, कैमल गन, पत्थरचट्टा बंदूक सहित रियासत कालीन के सभी हथियार रखे जाएंगे. यह ओपन म्यूजियम होगा. इस म्यूजियम को बाला किले […]
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Rajasthan Tourism: हथियारों के शौकीन लोगों के लिए खुशखबरी है. अलवर के बाला किला में राजस्थान का पहला शस्त्र म्यूज़ियम बन रहा है. इसमें छोटे बड़े 550 तरह की बंदूक, तमंचा, छोटी-बड़ी तोप, तलवार, कैमल गन, पत्थरचट्टा बंदूक सहित रियासत कालीन के सभी हथियार रखे जाएंगे. यह ओपन म्यूजियम होगा. इस म्यूजियम को बाला किले में बनाया जा रहा है.
अलवर का बाला किला खास है. क्योंकि इस किले में एक रात मुगल बादशाह बाबर ने गुजारी थी. इसके किले से आज तक कोई युद्ध नहीं हुआ. इसलिए इसके लिए का नाम बाला किला है. लेकिन अब बाला किले की एक और पहचान होगी. बाला किले में राजस्थान का पहला हथियारों का म्यूजियम बन रहा है. सितंबर माह तक इसका काम पूरा हो जाएगा. किले के चौक में प्रदेश का पहला शस्त्र म्यूजियम तैयार किया जा रहा है. इसमें विभिन्न तरह की छोटी बड़ी तोप, कैमल गन, टीपंडी बंदूक, पत्थरचट्टा, क्रिसेंट, तीर कमान, तलवार, चौकीदार बंदूक सहित 550 तरह के हथियार रखे जाएंगे. इसमें राजघराने के हथियार भी शामिल होंगे.
60 लाख की लागत से बनाया जा रहा है म्यूजियम
अलवर यूआईटी की तरफ से बाला किला में 60 लाख की लागत से म्यूजियम तैयार किया जा रहा है. राजस्थान के सभी म्यूजियम से अलग होगा. ओपन बरामदों में म्यूजियम तैयार किया जा रहा है. विशेष तकनीक इस में काम ली जा रही है. देश-विदेश से आने वाले पर्यटक इस म्यूजियम में रियासत कालीन हथियारों को देख सकेंगे.
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बाला किले में लगेगा टेलिस्कोप
इसके अलावा बाला किला में टेलिस्कोप लगाया जा रहा है. राजस्थान में आमेर किले के बाद बाला किला में पर्यटक अरावली की पहाड़ियों के साथ भूगोल मंडल में मौजूद तारों और ग्रहों को देख सकेंगे. इससे अलवर में पर्यटक बढ़ेगा. साथ ही साइंस के स्टूडेंट के अलावा भूगोल मंडल के शौकीन पर्यटन भी इसका आनंद ले सकेंगे.
बाला किला है खास
आमेर नरेश काकिल के द्वितीय पुत्र अलघुरायजी ने संवत 1108 (1049ई) में पहाड़ी की छोटी गढ़ी बनाकर किले का निर्माण प्रारंभ किया था. 13वीं शताब्दी में निकुंभों द्वारा गढ़ी में चतुर्भुज देवी के मंदिर का निर्माण कराया गया. अलावल खान द्वारा 15वीं शताब्दी में इस गढ़ी की प्राचीन बनवाकर इसको दुर्गा के रूप में पहचान दी गई. खानवा के युद्ध के पश्चात अप्रैल 1927 में मुगल बादशाह बाबर ने किले में रात्रि विश्राम किया था. 18वीं शताब्दी पूर्वोदय में भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने दुर्ग में जल स्रोत के रूप में सूरजकुंड का निर्माण कराया था. साथ ही 1775 में इस दुर्ग पर अधिकार कर इसमें सीताराम जी का मंदिर बनवाया था. 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में महाराज बख्तावर सिंह ने दुर्ग पर प्रताप सिंह की छतरी तथा जनाना महल का निर्माण करवाया था. जनाना महल स्थित स्तंभों के निर्माण में सफेद संगमरमर करौली का पत्थर स्थानीय स्लेटी रंग का पत्थर आदि लगाए गए थे. किले में प्रवेश के 6 दरवाजे बने हुए हैं. यह किला 5 किलोमीटर लंबा और करीब डेढ़ किलोमीटर चौड़ा है. इस किले की दीवारों में 446 छेद हैं. जिन छेदों में 10 फुट की बंदूक से गोली चलाई जाती थी. साथ ही 15 बड़े और 51 छोटे बुर्ज बनाए गए हैं.
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