“मेरे भाग्य की लकीरों में सेंट्रल जेल लिखी थी” दिव्या मदेरणा ने क्यों कही ये बात? वीडियो हो रहा वायरल

Divya maderna nomination: कांग्रेस की फायर ब्रांड नेता और ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा (divya maderna) ने 6 नवंबर को नामांकन किया. इस नामांकन से पहले वह जोधपुर (jodhpur news) जेल भी पहुंचीं. यहां पहुंचकर उन्होंने एक खास कनेक्शन बताया. मदेरणा ने अपने भाषण में कहा कि मेरे भाग्य की लकीरों में नहीं लिखा है. क्योंकि […]

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Divya maderna nomination: कांग्रेस की फायर ब्रांड नेता और ओसियां विधायक दिव्या मदेरणा (divya maderna) ने 6 नवंबर को नामांकन किया. इस नामांकन से पहले वह जोधपुर (jodhpur news) जेल भी पहुंचीं. यहां पहुंचकर उन्होंने एक खास कनेक्शन बताया. मदेरणा ने अपने भाषण में कहा कि मेरे भाग्य की लकीरों में नहीं लिखा है. क्योंकि भाग्य की लकीरों में सेंट्रल जेल लिखी थी. उनका यह वीडियो वायरल हो रहा है. दरअसल, नामांकन से पहले अपनी मां का आशीर्वाद लेकर रातानाड़ा स्थित मंदिर में भगवान शिव, श्री गणेश और देवी की पूजा अर्चना की. सच्चियाय मंदिर में दर्शन भी किया और दिव्या सिमरथा बाबा समाधि स्थल पर भी पहुंचीं.

इन सबके बीच वे जोधपुर जिला कारागार भी पहुंची. यहां हाथों में फूल लिए जेल के मुख्य द्वार पर खड़ी रहीं और पुष्प अर्पित कर पिता को याद किया. उन्होंने इस दौरान जेल के बाहर पिता से मुलाकात की एक पुरानी तस्वीर भी शेयर की. साथ ही कहा कि मैंने 10 साल अपने जीवन के (एक दशक )यहां पर सजदे किए हैं. मेरी राजनीतिक पैदाइश इस दर्द और वेदना से हुई है.

क्या है वीडियो में?

उन्होंने कहा “सोचकर देखिए कि आप जेल की सलाखों में हो और आपकी बेटी शादी मना रही हो. मेरे पिता जेल के अंदर कैसे करवट बदलते होंगे, कैसे दिन कटता होगा. मेरे भाग्य की लकीरों में नहीं लिखा है. क्योंकि भाग्य की लकीरों में सेंट्रल जेल लिखी थी.” बता दें कि दिव्या के पिता महिपाल मदेरणा प्रदेश के बहुचर्चित भंवरी देवी हत्याकांड में वर्ष 2011 से जेल में थे. वे 10 साल तक जेल में रहे. यहीं उन्हें कैंसर हो गया, जो फोर्थ स्टेज में पहुंच गया. वर्ष 2021 में उन्हें इलाज के लिए जमानत मिला. हालांकि वे कैंसर से जंग हार गए.

मदेरणा ने शेयर की पोस्ट

उन्होंने पोस्ट शेयर किया “मैंने 10 साल अपने जीवन के (एक दशक )यहां पर सजदे किए हैं. मेरी राजनीतिक पैदाइश इस दर्द और वेदना से हुई है. क्रूंदन और विरह जो नियति ने मेरे भाग्य में लिखा वही से मेरे राजनीतिक संघर्ष का आग़ाज़ हुआ. इस अभिशाप के साथ नियति ने मुझे फ़ोलाद की सलाख़ों से दोस्ताना कराया और उन सलाख़ों ने एक बेटी का किसी भी परिस्थिति में ना टूटने वाला हौसला देख वरदान दिया निडरता का, साहस का, शक्ति का, अनवरत चलने का और फ़ोलाद की तरह तटस्थ रहने का. सार्वजनिक जीवन में जिसे यह निडरता मिल जाये वह कर्तव्य पथ पर हमेशा अभिजीत है, क्योंकि मूल्यों की राजनीति ही असली व अंतिम विजय है.”

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