Rajasthan News: मैं परिंदा क्यों बनूं, मुझे तो आसमान बनना है. मैं पन्ना क्यों बनूं, मुझे तो दास्तान बनना है. जीत का जुनून है तो हार सोचना क्यों, जिंदगी है एक ही तो दो बार सोचना क्यों? ये मैं आपसे क्यों कह रहा हूं क्योंकि सचिन पायलट ने वीडियो के साथ यही गाना सोशल मीडिया में शेयर किया है. अब सचिन पायलट कोई गाना चुन रहे हों तो फिर उसके मायने भी निकाले जाएंगे और उसके मायने दूर तलक जाते हैं.
ADVERTISEMENT
वो गाना मैं सुनवा नहीं सकता क्योंकि म्यूजिक के कॉपीराइट का मामला हो जाता है. मगर फिर भी मैं चर्चा इसलिए कह रहा हूं कि जिस तरह से सचिन पायलट ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं, सभाएं कर रहे हैं और उसके बाद राजनैतिक विश्लेषक अलग अलग मायने निकाल रहे हैं. उन मायनों को सोशल मीडिया में अखबार में, टीवी चैनल पर रख रहे हैं. इस बीच ये गाना सोशल मीडिया में सचिन पायलट का शेयर करना मायने रखता है.
मैं परिंदा क्यों बनूं, वो बीजेपी में क्यों जाएंगे. उन्हें आसमान बनना है. उन्हें लगता है मैं पन्ना क्यों बनूं, मुझे दास्तान बनना है. अपनी नयी पार्टी क्यों बनाएं और हार से क्यों डरें. जीत का जुनून है और जिन्दगी एक बार ही है तो दोबारा सोचना क्यों. अब वे जान बूझ कर उन्होंने शेयर किया है या फिर दिल से निकली हुई ये आवाज है. मगर इसे लेकर खूब चर्चा हो रही है कि इन पंक्तियों को सचिन पायलट ने क्यों चुना है. चुनना भी चाहिए क्योंकि अफवाहों का बाजार गर्म है. तमाम अटकलों को उन्होंने विराम दे दिया है. तब भी जब कहा जा रहा था कि वो बीजेपी में जाने वाले हैं. बहुत लोगों की इच्छाएं और मुराद पूरी नहीं हो पाई. वो अब भी ऐसी इच्छा रखते हैं कि सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ देंगे.
मगर सचिन पायलट की इच्छा नहीं है कांग्रेस छोड़ने की. बहुत सारे बीजेपी के नेता भी चाहते हैं कि सचिन पायलट आ जाएं और सत्ता में बैठे कांग्रेस के लोग भी चाहते हैं कि कांटा निकले. मगर सचिन पायलट मजबूर कर दिए हैं गाना गाने पर अपने विरोधियों का कांटा लगे. कांटा लगा गाना भले ही वो गा रहे हैं मगर सचिन पायलट को क्या कांटा नहीं लगा है? सचिन पायलट क्या करेंगे राजस्थान की राजनीति में किसी को समझ में नहीं आ रहा है. बार बार यही चर्चा हो रही है कि क्या उनके मुख्यमंत्री बनने के दरवाजे बंद हो गए या फिर क्या अब भी वो मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं? क्या वो इन्तजार करेंगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खत्म होने का. क्या इसके साथ ही कांग्रेस नहीं खत्म हो जाएगी. क्या इसी को बचाने के लिए वो घूम रहे हैं? क्या आलाकमान को अपनी ताकत दिखा रहे हैं? क्या आलाकमान को अब भी उन्हें अपनी ताकत दिखानी है. लोग कह रहे हैं कि सचिन पायलट भीड़ जुटा रहे हैं. देखिए दीवार से, खिड़कियों से, छतों से अगर भीड़ लटकी हुई है तो वो लायी हुई भीड़ नहीं है. वो भीड़ आई हुई है.
इसीलिए ये कहना कि सचिन पायलट भीड़ जुटा रहे हैं, मुझे लग रहा है कि सचिन पायलट के लिए नाइंसाफी हो जाएगी. इतनी लोकप्रियता होने के बावजूद सचिन पायलट पार्टी नहीं बनाना चाह रहे हैं. क्योंकि जान रहे हैं कि पार्टी बनाने के लिए ढांचे की जरूरत होती है. कार्यकर्ताओं की जरूरत होती है. पैसे की जरूरत होती है. इतना आसान नहीं है. अगर इतना आसान होता तो हनुमान बेनीवाल सफल हो जाते. हांलाकि उनकी कई वजहें हैं असफल होने के मगर फिर भी उनके पास एक युवाओं की टीम है. गुर्जर-मीणा के परंपरागत विरोध को उन्होंने खत्म किया है. दलितों की टीम है अल्पसंख्यक मतदाताओं से जुड़ सकते हैं क्योंकि उनके परिवार का अतीत रहा है. पत्नी भी अल्पसंख्यक समुदाय से आती है और पढ़ा लिखा वर्ग, युवा वर्ग सचिन पायलट के साथ है तो फिर क्या दिक्कत है? मुझे लगता है कि वो कांग्रेस छोड़ना नहीं चाहते. उन्हें लगता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नहीं भी छोड़ेंगे मुख्यमंत्री का पद तो इंतजार करना चाहिए क्योंकि उसके बाद 40 साल तक आगे कोई नेता है नहीं. यहां देखिए ये पूरा पॉलिटिकल शो
ADVERTISEMENT