राजस्थान के ये पूर्व CM अपने सिग्नेचर के नीचे क्यों लिखते थे ‘कार’? पढ़ें ये रोचक किस्सा

Sukhadia used to write car under the sign: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया (mohanlal sukhadia) को आधुनिक राजस्थान के निर्माता कहा जाता है. साल 1954 से 1971 तक सूबे की सत्ता पर काबिज रहने के बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे. प्रदेश ही नहीं, देशभर में लोकप्रियता हासिल कर […]

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Sukhadia used to write car under the sign: राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया (mohanlal sukhadia) को आधुनिक राजस्थान के निर्माता कहा जाता है. साल 1954 से 1971 तक सूबे की सत्ता पर काबिज रहने के बाद कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे. प्रदेश ही नहीं, देशभर में लोकप्रियता हासिल कर चुके सुखाड़िया इंदिरा गांधी के खिलाफ खेमे में राजस्थान के अगुवा नेता भी थे. दूसरी ओर, उनके व्यवहार के लिए संगठन के नेता ही नहीं बल्कि धुर-विरोधी भी याद करते थे. ऐसे कई मौके आए जब उदयपुर (udaipur) ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में पकड़ रखने वाले सुखाड़िया के मुरीद उनके विरोधी भी हो गए. आज सियासी किस्से (siyasi kisse) में बात उसी मुख्यमंत्री की.

महज 38 साल की उम्र में सीएम की कुर्सी पर काबिज होने वाले सुखाड़िया को करीब दो दशक में कोई हटा नहीं पाया. विपक्ष हो या कांग्रेस आलाकमान, हर बार उनकी रणनीति इस दिग्गज के आगे फेल हो जाती थी. खास बात यह भी है कि वह पैदल घूमकर सड़कें नापते थे और खेतों में जाकर किसानों से मिला करते थे.

उनकी राजनीति ही नहीं, उपनाम को लेकर भी किस्सा दिलचस्प है. कहा जाता है कि गुजरात की प्रसिद्ध मिठाई सुखड़ी बनाने वाले परिवार से उनका नाता था. इसीलिए इनका उपनाम ‘सुखाड़िया’ पड़ा. वर्तमान में सुखड़ी मिठाई से बना ‘सुखाड़िया’ उपनाम मुख्यतः गुजरात और महाराष्ट्र में पाया जाता है. दरअसल, गुजरात का एक प्रसिद्ध घरेलू मिष्ठान सुखड़ी देशी घी, भुने हुए आटे और गुड़ से तैयार बर्फीनुमा मिठाई है. वे परिवार जो इस मिठाई की व्यापारिक गतिविधियां संचालित करते थे, उन्हें ही गुजरात में ‘सुखाड़िया’ कहा गया.

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वहीं, अगर कार्यशैली की बात की जाएं तो एक बात खास थी कि वह सरकारी कामकाज को समय पर निपटाने की हर वक्त कोशिश करते थे. इसके लिए जो भी जरूरी काम सुखाड़िया के पास आता, वह उसे जल्दी पूरी कर देते. इसी वजह से जब उन्हें जयपुर से बाहर जाना होता, तब भी उनकी गाड़ी में हमेशा फाइलों का एक बैग साथ रहता था और कार में ही उन फाइलों पर साइन कर देते थे.

कलेक्टर पहुंचाते थे फाइल

लेकिन कार में साइन करने के दौरान कई बार जल्दबाजी में साइन गड़बड़ हो जाते थे, ऐसे में जब ये फाइलें सचिवालय में अधिकारियों के पास पहुंचती तो संशय होने लगता कि क्या ये साइन मुख्यमंत्री के ही हैं? जब उन तक बात पहुंची तो उन्होंने तरकीब निकाली. बीच रास्ते में जिस भी फाइल पर अपने साइन करते, उसके नीचे ब्रेकैट में कार जरूर लिखते. इस बात का इशारा अधिकारियों के लिए था कि यह फाइल कार में साइन की गई है. ना सिर्फ जल्दी साइन करते, बल्कि फाइलों को संबंधित अधिकारी तक जल्द पहुंचाने के लिए भी अनोखा तरीका निकाल लिया था. वो जब सफर के दौरान फाइल साइन करते तो रास्ते में पड़ने वाले जिले के कलेक्टर को फाइल सौंप देते. जिसके बाद उस कलेक्टर को जिम्मेदारी होती कि वह फाइल जल्द से जल्द जयपुर पहुंचाई जाए.

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