First tiranga was made in Dausa for Independence Day: आज देश 77वां स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (narendra modi) ने लगातार 10वीं बार ध्वजारोहण कर लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित किया. लेकिन क्या आप जानते है कि आजाद भारत के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जो तिरंगा फहराया, वो कहां बना था? किसने इस तिरंगे में रंग भरे और कैसे यह लाल किले तक पहुंचा? क्या है इस तिरंगे का राजस्थान कनेक्शन? राजस्थान तक की खास सीरीज सियासी किस्से में बात आज इसी किस्से की.
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जब हमारी आजादी का प्रतीक और हमारी शान तिरंगा बना तो इसे खास तौर पर राजस्थान के दौसा में तैयार किया गया था. कहा जाता है कि इसी ध्वज को 15 अगस्त 1947 को पहली बार लाल किले पर पं. नेहरू ने फहराया था. खास बात यह है कि पिछले 8 दशक से दौसा खादी समिति के सैंकड़ों बुनकर तिरंगे का कपड़ा तैयार कर रहे हैं.
लाल किले की प्राचीर पर फहराया जाने वाला वह तिरंगा दौसा जिले के आलूदा गांव में बना था. इसके पीछे भी एक खास वजह बताई जाती है. उस समय आलूदा गांव में रहने वाले सैकडों बुनकर परिवार महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर चरखा कातते थे. उन्हीं के चरखे से कात कर हाथों से तिरंगे ध्वज को रंगकर दिल्ली ले जाया गया था. जानकारी के मुताबिक आलूदा के अलावा जयपुर जिले के गोविन्दगढ़ से भी तिरंगा दिल्ली भेजा गया था. पर बताया जाता है कि आजादी का पहला ध्वज दौसा का बना ही फहराया गया था.
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ऐसे तैयार हुआ था हमारी अस्मिता का प्रतीक तिरंगा
दरअसल, इस दिन चौथमल बुनकर ने एक तिरंगा बनाया और उसे लाल किले पर फहराया गया. यह तिरंगा आज भी भारत का राष्ट्रीय ध्वज है. चौथमल बुनकर एक देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने अपने हुनर और देशभक्ति से भारत को आजादी दिलाने में योगदान दिया. चौथमल बुनकर का तिरंगा आज भी भारत के लोगों के लिए एक प्रेरणा है. यह तिरंगा हमें देशभक्ति, स्वतंत्रता और समरसता का संदेश देता है. यह तिरंगा हमें याद दिलाता है कि हम एक देश हैं और हम एक साथ मिलकर कुछ भी कर सकते हैं.
आजादी के बाद वर्ष 1967 में दौसा खादी की स्थापना हुई. तभी से दौसा के बनेठा और जसोदा में तिरंगे झंडे का कपड़ा तैयार किया जाता है, इसकी प्रोसेसिंग के लिए फिर मुंबई भेजा जाता है. मुंबई से तिरंगा तैयार होने के बाद पुनः दौसा आता है और यहां से इसे बाजार में भिजवाया जाता है.
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