Will BJP be able to win in Rajasthan in 2023 without Vasundhara: राजस्थान (rajasthan news) की राजनीति में चुनाव (rajasthan assembly election 2023) करीब आते ही बीजेपी को लेकर एक चर्चा सियासत में सबसे ज्यादा है. वो है पिछले ढाई दशकों तक राजस्थान की सियासत में खास पहचान बनाने वाली पूर्व सीएम वसुंधरा राजे (vasundhra raje) की. इस बार आलाकमान न ही राजे के चेहरे पर चुनाव लड़ रहा है और न ही उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी दी गई है. यहां तक कि मोदी के मंच पर लगाकर उनकी अनदेखी हो रही है. ऐसे में ये सवाल सबसे अहम हो गया है कि क्या बीजेपी बिना राजे के गहलोत को पटखनी दे पाएगी. ये भी चर्चा है कि राजे यदि चाहें तो बीजेपी को एक चुनाव तो हरा ही सकती हैं.
ADVERTISEMENT
इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार और राजस्थान की सियासत को करीब से देखने वाले विजय विद्रोही ने कई सवाल खड़े किए हैं. साथ ही इस पूरे मामले पर उन्होंने विस्तार से चर्चा की है. पढ़िए उनका ये विश्लेषण…
राजस्थान बीजेपी में राजे का महत्व
विजय विद्रोही कहते हैं- एक आदत सी बन गई और आदत आसानी से नहीं जाती है. ये बात राजस्थान में राजे पर सटीक बैठती है. पिछले दो-ढाई दशक से राजस्थान बीजेपी और वसुंधरा राजे एक दूसरे के पर्याय बन चुके थे. जैसे आटे में नमक और दाल में तड़का होता है उसी तरह.
वसुंधरा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था
वसुंधरा के बिना पत्ता तक नहीं हिलता था. कोई रैली हो, सभा हो, नारा हो या रणनीति हो राजे आटे में नमक और दाल में तड़के का काम करती थीं. सारे नेता एक जैसे पर वसुंधरा में एक्ट्रा एबिलिटी थी. उनमें एक पॉजिटिव वाइव्स थी जो महिला और युवा वोटर्स को खींच लाती थीं.
तो क्या अब उनका सियासी क्लाइमेक्स आ गया है?
विजय विद्रोही कहते हैं- मैं ये बार-बार थीं-थीं क्यों कह रहा हूं. हैं क्यों नहीं? राजे तो अभी भी बीजेपी में ही हैं. बस यही कहानी है आज की. क्या मोदी और वसुंधरा के बीच जयपुर की सभा में जो हुआ उसके बाद मानकार चला जाए कि उनका सियासी क्लाइमेंक्स आ गया है या मानकर चला जाए कि एंटी क्लाइमेक्स अभी बाकी है.
तो क्या राजे का सियासी सफर खत्म हो गया?
लोग कह रहे हैं कि उनका सियासी सफर राजस्थान में खत्म हो गया है. अगर उन्होंने समझदारी से काम नहीं लिया तो बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में भी उनका सफर खत्म हो जाएगा. सब्र रखा, बेटे के पॉलिटिकल फ्यूचर और अपने समर्थकों के पॉलिटिकल फ्यूचर की चिंता की तो राष्ट्रीय राजनीति में बनी रहेंगी और राज्य की राजनीति में परोक्ष रूप से रहेंगी. यदि बीजेपी की सरकार केंद्र में नहीं बनती है तो उनको राज्य की राजनीति में खेलने का मौका मिलेगा.
राजे को सब्र करना होगा
बकौल विजय विद्रोही- लोग कहते हैं कि राजे ने बड़े-बड़े प्रतिद्वंद्वियों का सामना किया है. भैरोंसिंह शेखावत, जसवंत सिंह के अलावा अन्य कई बड़े नेता जो पार्टी में उनके दुश्मन रहे उनका मुकाबला करती रहीं. केंद्रीय आला कमान की ‘सक्रियता’ का मुकाबला करती रहीं. फिर सब्र करने में परहेज नहीं करना चाहिए.
मोदी अब कमल की बात क्यों कर रहे?
राजस्थान में मोदी को आशंका सता रही है कि यदि बीजेपी हारी तो हार का ठीकरा उनके चेहरे पर फूटेगा. इसलिए अपने चेहरे की बजाय कमल को आगे रख रहे हैं. पिछले दिनों रैली में पीएम मोदी ने कहा कि कमल के फूल पर ध्यान देना है.
विद या विदआउट वसुंधरा जीत रही BJP?
बीजेपी आलाकमान ये गुणा-गणित करके बैठा है कि आज की तारीख में यदि राजे को चेहरा घोषित किया जाता है क्या नफा-नुकसान होगा. यदि उन्हें बतौर सीएम पेश नहीं किया गया तो क्या नफा-नुकसान होगा. आलाकमान का मानना है कि राजे को चेहरा पेश करने पर ज्यादा नुकसान होगा बजाय चेहरा न घोषित करने पर होने वाले नुकसान के मुकाबले.
‘विद या विदाउट वसुंधरा हम लोग जीत रहे हैं…’ ऐसा बीजेपी को मानना है.
राजे ने पद पाने के लिए बनाया दबाव?
एक मीटिंग में गृहमंत्री अमित शाह ने साफ कर दिया कि आपको बहुत पद दिया और बहुत प्रतिष्ठा दी. अब औरों का भी ख्याल रखना है. पर राजे को लगा कि पार्टी पर दबाव डाला जा सकता है. भक्ति प्रदर्शन के बहाने शक्ति प्रदर्शन के जरिए और परिवतर्न यात्रा में शामिल न होकर दबाव बनाया जा सकता है. इधर कांग्रेस खेमे में नई जान आई है. पायलट और गहलोत में दोस्ती हुई है. मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी में नई जान फूंकी है. इसे लेकर बीजेपी आलाकमान थोड़ा दबाव में आएगा और वसुंधरा को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर देगा. राजे के समर्थक ये भूल गए कि ये बीजेपी का अलाकमान है. ये मोदी हैं.. अमित शाह और नड्डा हैं.
राजे की अनदेखी का कारण ये पुरानी बातें तो नहीं?
जब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी थे और राजस्थान मे सीएम राजे थीं तब दोनों में एक दो बड़े खट्टे संवाद हुए थे. जब 2014 में मोदी की जीत हुई थी तब ये माना गया कि ये मोदी की जीत है पर राजे ने इसका खंडन किया था. उन्होंने कहा था कि ये किसी एक शख्स की जीत नहीं बल्कि सामूहिक जीत है. मोदी मंत्रीमंडल बनाते हैं… वसुंधरा राजे दिल्ली में बीजेपी में सांसदों को लेकर बीकानेर हाऊस में बैठ जाती हैं और दबाव बनाती हैं कि इनको मंत्रालय दिया जाए या इनको न दिया जाए. इन्हें मंत्री न बनाया जाए.. इनको बनाया जाए. पर ये मोदी हैं. इनके ऊपर ज्यादा दबाव काम नहीं आया पाया. तब शायद मोदी इस खुंदक को दिल में दबाकर बैठ गए क्या.
अब राजे के आगे बचते हैं ये विकल्प
वसुंधरा के आगे क्या विकल्प बचते हैं? चुपचाप मान जाएं और बेटे के लिए कोशिश करें. दूसरा ये कि घर बैठ जाएं और अपने समर्थकों को इशारा करें. सलेक्टेड बैठकों में जाएं. ऐसे लोगों को चुनाव लड़वाएं जिससे बीजेपी का वोट कट और बंट जाएं. इससे गहलोत को फायदा मिले. ये मौका तो गहलोत खोज ही रहे होंगे. उनकी सत्ता में वापसी का बड़ा आधार और बड़ा रास्ता खुल जाएगा. लोगों का मानना है कि राजे बीजेपी को एक चुनाव हराने की क्षमता रखती हैं.
तो क्या राजे समर्थकों के पर कतरे जाएंगे?
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में जीते विधायकों में से 40 के आसपास राजे के समर्थक बताए जाते हैं. वहीं वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव में एक तिहाई राजे के समर्थक हैं. तो क्या विधानसभा चुनाव में उनके समर्थकों के पर कतरे जाएंगे.
सुना जा रहा है कि राजे एक सूची प्रहलाद जोशी को भेजी हैं. एक सूची खुद प्रहलाद जोशी के पास है. राजे की सूची को लेकर क्या होगा. ए, बी, सी, डी चार कटेगरी की सीटें तय की गई हैं. ए में 29 नाम हैं जिसमें पकी-पकाई सीटें हैं उनमें झालरापाटन भी है. यदि 29 में से 28 की घोषणा कर दी गई और एक सीट झालरापाटन को बाद में घोषित करने की बात कही गई तो ये बात भी राजे को बुरी लगने वाली होगी.
राजे को झालरापाटन से टिकट मिलेगा?
फिर आलाकमान क्या करेगा? झालरापाटन से वसुंधरा राजे को टिकट नहीं देगा. फिर उनका स्वर और समर्थकों का स्वर क्या होगा. बीजेपी के समर्थकों को ढेस तो लगेगी ही कि अचानक एक दिन दिल्ली से आलाकमान आता है और कहता है कि किसी चेहरे पर चुनाव नहीं होगा. कलेक्टिव लीडरशिप होगी. फिर कमल के फूल पर ध्यान देना है. ये माजरा क्या है. ये भी बड़ा सवाल है.
स्थानीय क्षत्रपों की क्या भूमिका होनी चाहिए?
स्थानीय क्षत्रपों की भूमिका को लेकर क्या होगा जो आपकी पार्टी की जड़े स्थापित करने में मदद करता है. राज्य विशेष में आपकी पार्टी को सींचने और पोधे से पेड़ बनाने में मदद करता है. तो क्या अचानक आलाकमान को उनकी जड़ों में मट्ठा डाल देना चाहिए.
ये हो सकता है विवाद से बचने का फॉर्मूला
फिर तो इन सबसे बचने के लिए अमेरिकी फॉर्मूले पर जाना चाहिए. कोई भी दो बार से ज्यादा लगातार पीएम या सीएम नहीं बने. बीच में गैप करके बने. दो बार से ज्यादा लगातार सांसद और राज्यसभा सदस्य न बने.अमेरिका में दो बार से ज्यादा कोई राष्ट्रपति नहीं बन सकता. 75 साल का फार्मूला भी सबपर लागू नहीं होता है. कुछ लोग कह रहे हैं कि यही बात तो वसुंधरा कह रही हैं कि आप तीसरी बार पीएम बन सकते हैं तो मैं सीएम क्यों नहीं बन सकती.
कुल मिलाकर कोई भी कुर्सी छोड़ना नहीं चाहता.
इनपुट: विजय विद्रोही के लाइव से.
यहां सुने वो पूरा लाइव
यह भी पढ़ें:
Rajasthan: राजे कैसे बनीं सियासत की महारानी, गहलोत के ‘जादू’ को बेअसर कर छीन ली सत्ता
ADVERTISEMENT