जाटलैंड में डोटासरा-बेनीवाल को चुनौती! 36 कौम को साधकर शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में पायलट

Rajasthan Assembly election 2023: राजस्थान के मुखिया के तौर पर ताजपोशी का इंतजार करने वाले सचिन पायलट अब मिशन 2023 की तैयारियों में उतर चुके हैं. नागौर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं और पाली को ही किसान महासभा को संबोधित करेंगे. पूर्वी राजस्थान में पैठ जमा चुके और युवाओं के समर्थन का दावा करने पायलट के जाटलैंड में […]

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Rajasthan Assembly election 2023: राजस्थान के मुखिया के तौर पर ताजपोशी का इंतजार करने वाले सचिन पायलट अब मिशन 2023 की तैयारियों में उतर चुके हैं. नागौर, हनुमानगढ़, झुंझुनूं और पाली को ही किसान महासभा को संबोधित करेंगे. पूर्वी राजस्थान में पैठ जमा चुके और युवाओं के समर्थन का दावा करने पायलट के जाटलैंड में कार्यक्रम ने हर किसी को चौंका दिया है. जहां सतीश पूनिया के बूते बीजेपी सत्ता में काबिज होने की जुगत में है. दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बहाने अशोक गहलोत भी जाटों को साधने में लगे हैं.

दिलचस्प बात ये है कि इस बार जिस क्षेत्र से पायलट यात्राओं का आगाज करेंगे, वहां डोटासरा, हनुमान बेनीवाल जैसे दिग्गजों का प्रभाव भी है. इस शेखावाटी के इर्द-गिर्द राजस्थान ही नहीं बल्कि देश की जाट राजनीति की धुरी भी घूमती है.

जाट बहुल इलाके में पिछले दो दशक के दौरान हमेशा सियासी समीकरण बदलते रहे. ऐसे में पायलट किसान महासभा के बहाने जाटों पर निशाना साधेंगे. सियासी समीकरण के लिहाज से देखें तो जाट समुदाय से भले ही प्रदेश में कभी कोई मुख्यमंत्री नहीं बना. लेकिन दिग्गज जाट नेताओं की धमक हमेशा राज्य और केंद्र की राजनीति में दिखी. चाहे इंदिरा गांधी के खास रामनिवास मिर्धा हो या 1998 के दौर में सीएम के दावेदार परसराम मदेरणा. वही, मदेरणा जिन्हें मात देकर साल 1998 में पहली बार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने. जिसके बाद इस समुदाय के युवाओं के गुस्से के चलते गहलोत को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी.

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गहलोत ने कसा था तंज एक जाति से नहीं बन सकते सीएम
शायद पायलट बखूबी जानते हैं कि प्रदेश के 7 जिलों में करीब 60 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाने वाला यह वोटर उनके लिए फेसवॉर की लड़ाई में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. जिसके चलते समुदाय के युवाओं-किसानों को एकजुट कर समुदाय के वोट बैंक को साधने के लिए निकल चुके हैं. ताकि पायलट यह भी साबित कर पाए कि वह एक जाति या क्षेत्र नहीं बल्कि पूरे प्रदेश और हर वर्ग के नेता है. क्योंकि गहलोत गुट अक्सर ही उन्हें पूर्वी राजस्थान और गुर्जर समाज से जोड़कर इस बात को हवा देता है कि वह एक जाति-क्षेत्र के नेता है. पिछले महीने ही गहलोत ने नदबई (भरतपुर) में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि एक जाति से कोई सीएम नहीं बनता.

सीएम बनने के लिये सभी वर्ग और जाति के लोगों का समर्थन और प्यार चाहिए. उन्होंने कहा था कि वह भले ही अपनी जाति के एक मात्र विधायक है फिर भी वह तीसरी बार मुख्यमंत्री है. मैं चाहता हूं कि हर कौम की सेवा करूं, चाहे वो जाट हों, गुर्जर हों, राजपूत हों, कुशवाहा हों जो भी कौम के लोग हैं. सीएम ने कहा था कि जातियों के आधार कोई मुख्यमंत्री नहीं बनते हैं. इस बयान को भी पायलट पर तंज के तौर पर देखा गया था.

वसुंधरा के फॉर्मूले को समझ रहे पायलट
साल 2003 में गहलोत सरकार के खिलाफ गुस्से को भुनाकर वसुंधरा राजे ने प्रचार किया. तब उन्होंने राजपूत की बेटी, जाट की बहू और गुर्जर की समधन का जातिगत समीकरण लोगों के बीच पहुंचाया. जिसके बूते उन्हें सूबे की सत्ता हासिल हुई. ऐसे में मायने यह भी है कि राज्य में गुर्जर, मीणा और जाट जैसी अहम जातियों को एक साथ लाकर पायलट प्रदेश में व्यापक लोकप्रियता हासिल करना चाहते हैं.

शेखावटी की धरती से ही पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने साल 1999 में जाटों को आरक्षण देने की घोषणा की थी. जिसके बाद देश की जाट राजनीति को बीजेपी ने साध लिया. जिसके बाद से शेखावाटी क्षेत्र को देश में जाट राजनीति के प्रमुख केंंद्र के तौर पर देखा जाने लगा.

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