BJP’s MP formula in Rajasthan election: राजस्थान चुनाव (rajasthan assembly election) के लिए बीजेपी (bjp) कार्यकर्ताओं को उम्मीदवारों की लिस्ट का इंतजार है. वहीं, मध्यप्रदेश में अब तक प्रत्याशियों की 2 लिस्ट जारी हो चुकी है. 25 सितंबर यानी कल रात दूसरी लिस्ट ने अब हर किसी को हैरान कर दिया. इस चुनाव में पार्टी मध्य प्रदेश में तीन केंद्रीय मंत्री समेत 7 सांसदों को चुनाव में उतारेगी. इस ऐलान के बाद ही राजस्थान (rajasthan news) में सरगर्मी तेज हो गई है. कयास लगाए जा रहे हैं कि मध्यप्रदेश का फार्मूला राजस्थान में भी अपनाया जा सकता है. ऐसे में एमपी की तर्ज पर राजस्थान में भी पार्टी केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा उम्मीदवार बना सकती है.
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पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीजेपी को लगता है इससे पार्टी के पक्ष में माहौल बनेगा. साथ ही यह मैसेज देने की कोशिश भी जाएगी कि बीजेपी चुनाव में अपनी बेस्ट टीम उतार रही है. सीधे तौर पर कोशिश कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने की होगी. कहा यह भी जा रहा है कि यह प्रयोग सिर्फ उन्हीं सीटों पर किया जाएगा, जहां जरूरत होगी.
कर्नाटक-गुजरात में भी चौंका चुकी है पार्टी
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब बीजेपी ने विधानसभा चुनाव को लेकर ऐसा प्रयोग किया हो. कर्नाटक और गुजरात विधानसभा चुनाव में भी सत्ता बचाने के लिए पार्टी ने यह प्रयोग किया. हालांकि गुजरात में प्रचंड बहुमत मिला. जबकि बीजेपी का दक्षिण किला ढह गया. दरअसल, पार्टी ने कर्नाटक में 25 से ज्यादा मंत्रियों, विधायकों और सांसदों के करीबी रिश्तेदारों को टिकट देकर दक्षिण का एकमात्र किला बचाने की चाल चली थी.
वहीं, जनता की नाराजगी को देखते हुए बीजेपी ने 45 विधायकों के टिकट काट दिए गए. नतीजन इन सीटों में से 43 विधायक सदन पहुंचें. संभावना यह भी है कि ‘गुजरात मॉडल’ की तर्ज पर राजस्थान में भी आंतरिक सर्वे को बुनियाद बनाकर विधायकों का टिकट काट दे. हालांकि एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए पार्टी ने ऐसा किया था, जबकि प्रदेश में बीजेपी विपक्ष में है.
सांसद सीपी जोशी को कमान देना भी सरप्राइज!
वहीं, प्रदेश में चुनावी तैयारियों की बात करें तो चित्तौड़गढ़ सांसद सीपी जोशी को संगठन की कमान देकर भी पार्टी ने सबको चौंकाया. वहीं, सांसद डॉ. किरोड़ीलाल मीणा सत्ताधारी दल कांग्रेस को लगातार घेर रहे हैं. जबकि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी एक-दूसरे पर लगातार वार कर रहे हैं.
इधर, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल को पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के करीब होने का फायदा भी मिला. जिसके चलते उन्हें घोषणा पत्र समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है. इनके अलावा सांसद दीया कुमारी और टोंक-सवाईमाधोपुर से दो बार के सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया का नाम भी चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा में हैं. दोनों ही सांसद अपने चुनाव लड़ने की संभावना को खारिज कर चुके हैं. हालांकि यह सबकुछ पार्टी के फैसले पर ही निर्भर करेगा.
राजस्थान में पड़ोसी राज्य का फॉर्मूला होगा सफल?
एक्सपर्ट्स की मानें तो एमपी का फॉर्मूला राजस्थान में कई सीटें जीतने की संभावनाओं के साथ ही एक नकारात्मक प्रभाव भी छोड़ सकता है. राजनीतिक विशेषज्ञ और CSDS से जुड़े प्रो. संजय लोढ़ा मानते है कि अगर यह फॉर्मूला अपनाया गया तो बीजेपी की अंदरूनी कलह और भी बढ़ सकती है. गुटबाजी बढ़ने से पार्टी की हार का खतरा भी बढ़ जाएगा. साथ ही आधा दर्जन सांसदों के चुनाव लड़ाने की चर्चाओं के बीच विधानसभा के बाद लोकसभा में नए सिरे से मेहनत करनी होगी.
दूसरी ओर, इसका संदेश पार्टी की रणनीति के विपरीत भी हो सकता है. एक्सपर्ट्स की मानें तो वसुंधरा राजे, सतीश पूनिया और राजेंद्र राठौड़ की राजनीति पर भी इसका प्रभाव होगा. साथ ही इससे संदेश जाएगा कि पार्टी के भीतर स्थानीय नेताओं पर भरोसा नहीं किया जा रहा है. साफ है राजनीतिक तौर पर ऐसी स्थितियां कमजोरी की तरफ इशारा है.
शेखावत-मेघवाल के भरोसे ढहाएंगे गहलोत का गढ़?
सांसदों को लड़ाए जाने पर बीजेपी अगर विचार करती है तो इसका फायदा भी मिल सकता है. पूरे प्रदेश में सियासी गणित की बात करें तो मारवाड़ और मेवाड़ में बीजेपी काफी मजबूत है. लेकिन पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वसुंधरा राजे के खास रहे कैलाश मेघवाल का निष्कासन मेवाड़ में एससी वोटबैंक को डैमेज कर सकता है. ऐसे में पार्टी को यहां नई रणनीति अपनानी होगी. प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी इसी क्षेत्र से आते हैं, जिसके चलते उनके लिए चुनौती दोगुनी होगी. जबकि पिछले चुनाव में पूर्वी राजस्थान में खाली हाथ रही बीजेपी को यहां बड़े चेहरे की जरूरत है. जबकि श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ समेत उत्तरी राजस्थान में भी चुनौती कम नहीं है.
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