Rajasthan News: पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के अनशन के बाद राजस्थान कांग्रेस में फिर से सियासी माहौल गरमा गया है. प्रदेश के साथ देशभर में भी चर्चाएं जोरों पर हैं. विपक्षी पार्टी बीजेपी भी इसी तकलीफ से जूझ रही है. दिलचस्प है कि राजस्थान कांग्रेस की बगावत दूर करने की जिम्मेदारी उन्हीं नेताओं को दी जा रही है, जिनके सूबे में बगावत की वजह के चलते पार्टी सत्ता गंवा चुकी है. बताया जा रहा है कि रंधावा के साथ ही गहलोत और पायलट के बीच की नाराजगी को सुलझाने का जिम्मा एमपी के पूर्व सीएम कमलनाथ को दिया गया है.
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कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के कलह के चलते पंजाब में सत्ता हाथ से चली गई. जबकि मध्य प्रदेश में 2003 से काबिज बीजेपी को सत्ता से हटाकर 15 साल बाद कमबैक करने वाली कांग्रेस के हाथ से सत्ता ऐसी फिसली कि इसके पीछे भी सिंधिया की बगावत बड़ी वजह रही.
गहलोत-पायलट की कहानी वही, पृष्ठभूमि नई
हाल में कांग्रेस अजीब दौर से गुजर रही है. सूरत कोर्ट के फैसले के बाद राहुल गांधी की सांसदी चली गई. कांग्रेस अपने बड़े नेता को लेकर परेशान हैं. इसी बीच राजस्थान कांग्रेस में फिर से अदावत शुरू हो गई है. जिसकी कहानी तो पुरानी है, लेकिन पृष्ठभूमि नई है. इस बार पायलट भ्रष्टाचार से लड़ने की बात कह रहे हैं. वसुंधरा राजे-गहलोत के गठजोड़ का आरोप लगाया. इस बीच संदेश गया कि आलाकमान सख्त हुआ और लगा कि बड़ी कार्रवाई होने वाली है. लगातार प्रभारी रंधावा भी इशारों ही इशारों में पायलट को अपनी कुर्बानी याद दिलाकर कह रहे हैं कि मैं भी सीएम नहीं बना, लेकिन मैंने पार्टी नहीं छोड़ी. इस बीच ये भी कह चुके हैं कि मैं ही आलाकमान हूं. अचानक अब कमलनाथ का उतरना चर्चा का विषय बन गया है.
जानें कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ क्या हुआ
पंजाब कांग्रेस विवाद में सुखजिंदर रंधावा कैप्टन अमरिंदर सिंह के करीब रहे. नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन के बीच जब तलवारें खिचीं तो रंधावा कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ खड़े थे, लेकिन कैप्टन के इस्तीफा देने के बाद रंधावा ने पार्टी में ही रहने का फैसला किया. यहां तक कि जब चरणजीत सिंह चन्नी को 20 सितंबर को सीएम बनाया तो सुखजिंदर रंधावा डिप्टी सीएम के पद पर राजी हुए. इसलिए लगातार रंधावा इशारों ही इशारों में पायलट को अपनी कुर्बानी याद दिलाकर कह रहे हैं कि मैं भी सीएम नहीं बना, लेकिन मैंने पार्टी नहीं छोड़ी.
कमलनाथ के सीएम बनने के बाद अंदरूनी कलह के चलते सत्ता से दूर
गहलोत-पायलट के बीच दूरियां मिटाने की जिम्मेदारी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कंधों पर भी है. ये भी कितना दिलचस्प है कि चाहे रंधावा हो या कमलनाथ, दोनों के सूबे ने ना सिर्फ बगावत झेली, बल्कि झोली में आई सत्ता को अंदरूनी कलह की वजह से गंवा दिया. ऐसे में दोनों अपने उस दर्द के साथ जब जी रहे हैं तो उन्हें जिम्मा दिया है राजस्थान कांग्रेस का दुख दूर करने का.
मध्य प्रदेश में भी हुआ मानेसर वाला एपिसोड और गिर गई थी सरकार
मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता पर काबिज होने वाली कांग्रेस सरकार महज 15 महीने बाद ही गिर गई. ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ 22 कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे के बाद कमलनाथ ने 20 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. दरअसल, 5 मार्च 2020 को खबर आई कि कांग्रेस के 11 विधायक मानेसर और बेंगलुरू की होटल में रुके हुए हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश की सियासत में एक बड़ा पॉलिटिकल ड्रामा शुरू हुआ. इस बीच दिग्विजय सिंह समेत तमाम नेताओं ने विधायकों को मनाने की कोशिश भी की. जिसके बाद पता चला कि सभी 22 विधायक बेंगुलुरू के एक होटल में हैं और सिंधिया के इस्तीफे के बाद बेंगुलुरू में मौजूद 22 विधायकों ने भी एक साथ अपना इस्तीफा दे दिया. इससे कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. इसी के बाद 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
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