चुनाव से पहले ओबीसी आरक्षण की मांग, हरीश चौधरी बोले- 27 फीसदी आरक्षण लागू करे गहलोत सरकार

Harish Chaudhary demanded from Gehlot: राजस्थान में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव है, लेकिन दोनों मुख्य दल बीजेपी और कांग्रेस के लिए अंदरूनी कलह चुनौती है. कांग्रेस की सरकार रिपीट करने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने उन्हीं के विधायक मोर्चा खोले हुए है. कभी उनके खास रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री […]

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Harish Chaudhary demanded from Gehlot: राजस्थान में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव है, लेकिन दोनों मुख्य दल बीजेपी और कांग्रेस के लिए अंदरूनी कलह चुनौती है. कांग्रेस की सरकार रिपीट करने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने उन्हीं के विधायक मोर्चा खोले हुए है. कभी उनके खास रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री और बायतु विधायक हरीश चौधरी ने एक मांग को लेकर गहलोत सरकार पर फिर से दबाव बनाना शुरू कर दिया है.

विधायक हरीश चौधरी की मांग है कि सभी जातियों को उनका हक दिलवाने के लिए राज्य सरका जातिगत जनगणना करवाए. साथ ही ओबीसी आयोग अध्यक्ष भंवरू खान से मुलाकात कर ओबीसी आरक्षण की सीमा बढ़ाने की भी मांग की. विधायक हरीश चौधरी ने कहा कि दो साल पहले से ये मुद्दा उठाया हुआ है, हम केवल ओबीसी की बात नहीं करते. बल्कि SC-ST समेत सभी जातियों की मांग कर रहे है. इसलिए सभी को अपना-अपना हक मिलना चाहिए.

उन्होंने कहा कि इसके लिए जातिगत आधार पर राजस्थान में जनगणना हो. पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चौधरी ने ओबीसी आरक्षण की सीमा 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग रखी है. ओबीसी की राज्य की कुल जनसंख्या में आधी से ज्यादा हिस्सेदारी है. बावजूद इसके राज्य के वर्गवार आरक्षण में ओबीसी वर्ग को मात्र 21 प्रतिशत आरक्षण दिया हुआ है, जो कि जनसंख्या के अनुपात में ओबीसी वर्ग के प्रतिनिधि में सबसे बड़ी बाधा है.

दो साल से समिति की है मांग-चौधरी
चौधरी ने कहा कि प्रदेश में जातिगत जनगणना के आंकड़ों के अनुसार जनसंख्या में हिस्सेदारी के अनुपात में आरक्षण देकर ओबीसी वर्ग को राहत दी जाए. ज्ञापन में मांग की गई है कि संख्या के अनुसार तत्काल प्रभाव से ओबीसी वर्ग को आरक्षण केंद्र सरकार की तर्ज पर बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जाए, ताकि जातिगत जनगणना के पश्चात जनसंख्या अनुपात में हिस्सेदारी सुनिश्चित हो सके. साथ ही कहा कि ओबीसी आरक्षण संघर्ष समिति दो साल से यह काम कर रही है. इसे चुनावी मुद्दे के रूप में नहीं देखना चाहिए.

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