OBC Reservation in Rajasthan: मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (ashok Gehlot) के मानगढ़ (mangarh) में मंच से 6 फीसदी अतिरिक्त ओबीसी आरक्षण के ऐलान ने हलचल तेज कर दी है. उन्होंने ओबीसी में ‘अति पिछड़ा वर्ग’ को अतिरिक्त आरक्षण (reservation) देने का ऐलान किया है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि इस कैटेगरी में किन जातियों को लाभ मिलेगा? साथ ही यह भी कि यह प्रक्रिया कितनी आसान है? इन तमाम सवालों के जवाब को ढूंढने के लिए राजस्थान तक ने पड़ताल की.
ADVERTISEMENT
एक्सपर्ट्स से बातचीत में सामने आया कि सीएम की यह घोषणा सामाजिक संदर्भ में उचित और न्यायसंगत है. लेकिन इसे लागू कर पाने के लिए उनके पास काफी कम समय है. क्योंकि चुनाव में महज 3-4 महीने का समय बचा है और आचार संहिता भी अक्टूबर में लगने की संभावना जताई जा रही है.
कई चरणों से गुजरना होगा
आरक्षण बढ़ाए जाने के इस फैसले को कई चरणों से गुजरना होगा. जिसके लिए ओबीसी आयोग इसका सर्वे करेगा. जिसे करने में ही एक लंबा समय लगेगा. अगर इसे सरकार अपने स्तर पर लागू भी करना चाहती है तो इसके लिए कैबिनेट की सहमति के बाद राज्यपाल की स्वीकृति जरूरी होगी. जो कि पूरी पेचीदा प्रक्रिया है.
OBC आयोग का गठन ही प्रॉपर नहीं
राज्य में ओबीसी आयोग का गठन भी प्रॉपर नहीं है. फिलहाल 5 मेंबर्स वाले आयोग में केवल एक अध्यक्ष जस्टिस भंवरू खान हैं. बाकी मेंबर्स और दूसरे पद खाली हैं. यानी आयोग का गठन ही प्रॉपर नहीं हुआ है और काम भी कुछ नहीं हो रहा है.
राजनैतिक विश्लेषक शंकर लाल चौधरी का कहना है कि यह सरकार का सही कदम है. यह बात ठीक है कि पहले जातिगत जनगणना की जाए और आर्थिक-सामाजिक विश्लेषण किया जाए. लेकिन महज 3 महीने के भीतर यह लागू नहीं किया जा सकता है. बल्कि हो सकता है कि कांग्रेस इसे अपने चुनावी एजेंडे के तौर पर प्रचारित करे. संभावित तौर पर कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी शामिल कर लिया जाए.
महाराष्ट्र में हुई थी जल्दबाजी
शंकर लाल चौधरी का कहना है कि महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को इतनी ही जल्दी लागू किया गया. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें डेटा इकठ्ठा करने के निर्देश दिया और मराठा आरक्षण के फैसले पर स्टे आ गया. इसलिए जरूरी है कि इस फैसले को ऐसे लागू किया जाए कि यह कानूनी अड़चनों में ना फंसें.
गुर्जर आंदोलन के बाद आया MBC का अस्तित्व
अगर गुर्जर आरक्षण का उदाहरण देखें तो समाज का आंदोलन साल 2007 में शुरू हुआ और आरक्षण फरवरी 2019 में लागू हो पाया. इसे लेकर 23 मई 2008 को बयाना के पास स्थित पीलूपुरा रेलवे ट्रैक और आगरा रोड पर सिकंदरा पर जाम लगाकर प्रदर्शन किया गया था. जिसमें 42 लोगों की जान चली गई. इसके बाद विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) में 5 फीसदी आरक्षण देने पर सहमति बनी.
बीजेपी ने किया ऐलान, कांग्रेस ने निभाया
साल 2008 में वसुंधरा राजे की सरकार ने बिल पारित करवाया. लेकिन इस बिल पर साइन 2009 में कांग्रेस शासन में राज्यपाल ने किए, लेकिन कोर्ट ने रोक लगा दी थी. साल 2010 में गुर्जरों ने फिर आंदोलन किया और उन्हें महज एक फीसदी आरक्षण दिया गया. जब 5 जनवरी 2011 को समझौता हुआ कि सरकार कोर्ट के आदेशानुसार आरक्षण देगी तो साल 2012 में ओबीसी कमीशन ने गुर्जर सहित 5 जातियों के पक्ष में रिपोर्ट दी.
बार-बार कोर्ट में अटका मामला
लेकिन मामला यही नहीं सुलझा. साल 2013 में कोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण पर रोक लगा दी. फिर जब 16 अक्टूबर 2015 को 5 प्रतिशत आरक्षण मिलने लगा तो 9 दिसबर 2016 को हाईकोर्ट ने आरक्षण रद्द कर दिया. इसके बाद वर्ष 2017 में फिर आंदोलन की चेतावनी दी गई. जब सरकार सुप्रीम कोर्ट में गई तो 2017 में एमबीसी आरक्षण देना तय हुआ. इस दौरान ओबीसी आरक्षण 21 से बढ़ाकर 26 फीसदी किया गया. लेकिन मामला फिर अटका और लागू होने से पहले ही याचिका कोर्ट में लग गई. जिसके चलते इस पर अक्टूबर 2017 में रोक लगी. अंत में फरवरी 2019 में यह समाज को यह आरक्षण मिला. जिसके बाद गुर्जरों सहित रैबारी, रायका, बंजारा व गाड़िया लुहार को विशेष पिछड़ा वर्ग (MBC) के तहत पांच फीसदी आरक्षण का लाभ दिया गया.
जातिगत जनगणना में कितना लगेगा समय?
चूंकि इसे चुनावी साल से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें जातिगत जनगणना गहलोत का बड़ा दांव कहा जा रहा है. ऐसे में बड़ा सवाल इस पूरे प्रक्रिया में लगने वाले समय को लेकर भी है. दूसरी ओर, तथ्य यह भी गुर्जर समाज को आरक्षण देने से पहले उनके सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण के लिए चोपड़ा कमीशन गठित किया गया. गुर्जर आन्दोलन के नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व वाली राजस्थान गुर्जर आरक्षण समिति ने 16 जुलाई 2007 को चोपड़ा समिति के सामने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया था. जिसके बाद चोपड़ा समिति ने अपनी रिपोर्ट राजस्थान सरकार को सौप दी थी.
आरक्षण समिति के अध्यक्ष विजय सिंह बैंसला की मानें तो इस पूरी प्रक्रिया में 2.5 साल लग गए. जिसके लिए समिति के सदस्यों ने गांव-गांव, ढाणी-ढाणी जाकर समाज की स्थिति का आंकलन किया. वहीं, प्रदेश में यह मामला सिर्फ आरक्षण तक का नहीं है. जातिगत आरक्षण के बावजूद भी नौकरियों में उसका लाभ ठीक से नहीं मिल पाता. इसकी बड़ी वजह है रोस्टर प्रणाली.
कुल मिलाकर सरकार चुनावी मोड़ पर खड़ी है. ऐसे में ओबीसी में अति पिछड़ा वर्ग के लिए 6 फीसदी के आरक्षण का लाभ कबसे मिलेगा ये सवाल बना हुआ है. इसमें कितना वक्त लगेगा, कितनी अड़चनें आएंगी ये अभी कहा नहीं जा सकता.
ADVERTISEMENT