शेखावाटी की राजनीति इन दिनों काफी गरमा गई है. नागौर (nagaur news) में मिर्धा परिवार के सदस्य एक के बाद एक कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं. अब यहां पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी (BJP) ने बड़ा झटका दे दिया है. कभी कांग्रेस की दिग्गज नेता रही डॉ. ज्योति मिर्धा ही यहां बीजेपी की उम्मीदवार होगी. जबकि कांग्रेस (congress) में एक नए फॉर्मूले पर मंथन हो रहा है. बीजेपी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस खुद उम्मीदवार उतारने की बजाय आरएलपी को समर्थन दे सकती है.
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अगर ऐसा हुआ तो नागौर में एक बार फिर हनुमान बेनीवाल और ज्योति मिर्धा के बीच मुकाबला होगा. इससे पहले साल 2014 में जब दोनों आमने-सामने हुए तो हार का सामना करना पड़ा और जीत बीजेपी प्रत्याशी सीआर चौधरी की हुई. साल 2019 में बीजेपी ने आरएलपी के साथ गठबंधन करते हुए हनुमान बेनीवाल को मैदान में उतारा और कांग्रेस की ज्योति मिर्धा चुनाव हार गई.
अब मिर्धा बीजेपी में हैं और बेनीवाल कांग्रेस के गठबंधन के साझीदार हो सकते हैं. लेकिन इस गठबंधन को लेकर नागौर कांग्रेस एकमत नहीं है. यहां के जाट नेताओं ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इस पहल का अंदरखाने विरोध भी किया. दिलचस्प बात यह भी है कि डॉ. ज्योति मिर्धा ने विधानसभा चुनाव के दौरान ही हनुमान बेनीवाल और गहलोत की दोस्ती का खुलासा कर दिया था.
मिर्धा ने गहलोत पर लगाए थे आरोप
ज्योति मिर्धा ने कहा कि हनुमान बेनीवाल अशोक गहलोत के साथ मिले हुए हैं. इनको अशोक गहलोत ने ही पनपाया था. सर्वे बता रहे हैं कि अकेले के दम पर आरएलपी राजस्थान में चुनाव लड़ती है तो इसकी एक भी सीट नहीं आएगी. इसलिए दौड़-भाग कर गठबंधन करते हैं. तत्कालीन सीएम गहलोत पर आरोप लगाते हुए कहा कि डीएमएफटी का फंड जारी हुआ तो परबतसर और लांडनूं के अंदर पायलट के खास कहे जाने वाले को जीरो मिला है. वहीं, गहलोत के करीबी महेंद्र चौधरी को 22 करोड़ रुपए का फंड मिला है. इधर यही बजट हनुमान बेनीवाल को भी मिला है.
दोनों की दोस्ती के चलते ज्योति मिर्धा ने छोड़ी पार्टी
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाली ज्योति मिर्धा ने दावा किया था कि पार्टी में उनकी अनदेखी की गई और कार्यकर्ताओं को भी सम्मान नहीं दिया गया. इसी वजह से उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वॉइन कर ली. ज्योति मिर्धा ने ‘राजस्थान तक’ से खास बातचीत में कहा था- “कांग्रेस का खून निचोड़कर आरएलपी को सींचा जा रहा था. समय समय पर हमने इसकी जानकारी दी थी. पता नहीं क्या मामला था. क्या मजबूरियां थीं. तब पार्टी में इंटरनल पॉलिटिक्स चल रही थी. सचिन पायलट का ग्रुप बन गया था. उसके बाद सरकार थोड़ी लड़खड़ा सी गई थी. ऐसा लगता है कि आपस में एडजस्टमेंट टाइप का चल रहा था. मुझे लगा उपचुनाव के बाद चीजें बदलेंगी, लेकिन तब भी बात नहीं बनी.”
हरीश चौधरी है गठबंधन के खिलाफ!
कहा जा रहा है कि पूर्व मंत्री हरीश चौधरी ने सीडब्ल्यूसी की बैठक और कांग्रेस के महासचिव वेणुगोपाल से बात कर आएलपी से गठबंधन न करने की सलाह दी है. एक तरफ कुछ नेता आरएलपी के साथ गठबंधन चाहते हैं. वहीं दूसरी तरफ हरीश चौधरी का मानना है कि इससे कांग्रेस को जबरदस्त नुकसान हो सकता है.
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