National Daughter’s day: गंभीर बीमारी के चलते बेटी को खोया, फिर पिता ने कुछ ऐसे दी श्रद्धांजलि

राजस्थान तक

• 02:04 PM • 24 Sep 2023

National Daughter’s day: ‘बेटियां भगवान किस्मत वालों को देता है और केनिशा जैसी बहादुर बिटिया मेरे घर आई तो यकीन मानो किस्मत हम पर औरों से ज्यादा मेहरबान रही होगी. हां, यह बात अलग है कि वो थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी के साथ पैदा हुई थी. अपने नौ साल के संघर्ष के दौरान वो कई […]

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National Daughter’s day: ‘बेटियां भगवान किस्मत वालों को देता है और केनिशा जैसी बहादुर बिटिया मेरे घर आई तो यकीन मानो किस्मत हम पर औरों से ज्यादा मेहरबान रही होगी. हां, यह बात अलग है कि वो थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी के साथ पैदा हुई थी. अपने नौ साल के संघर्ष के दौरान वो कई सबक सीखा कर गई है.’ यह कहना है जयपुर (jaipur news) के अजय शर्मा का, जिन्होंने हाल ही में अपनी दिवंगत बेटी केनिशा पर एक किताब लिखी है. आज Daughter’s Day पर कहानी इसी किताब के बारे में.

केनिशा थैलेसीमिया मेजर बीमारी से ग्रस्त थी. तीन साल पहले उसका निधन हो गया है. अजय बताते हैं कि इस किताब के जरिए मैं अपनी बेटी के संघर्ष को सभी के साथ साझा करने के साथ ही थैलेसीमिया जैसी बीमारी के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास कर रहा हूं. किताब को पं. जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी की ओर से प्रकाशित किया गया है, हाल ही में उसका विमोचन हुआ है. केनिशा के संघर्ष की कहानी को काफी पसंद भी किया जा रहा है.

हां हमसे चूक हुई है, पर कोई और ना करे

अपनी किताब के बारे में वे बताते हैं कि थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है. माता-पिता के जरिए ही बच्चे को मिलती है. इसमें यदि एक टेस्ट के जरिए पता किया जा सकता है कि व्यक्ति थैलेसीमिक तो नहीं है. हमसे भी वही चूक हुई, हम दोनों थैलेसीमिया माइनर थे. हमने जांच नहीं करवाई और परिणाम स्वरूप हमें जो बिटिया हुई, उसे जन्म से ही थैलेसीमिया मेजर परेशानी हुई. उसके बाद 8 साल तक हमने लगातार हर 15 दिन में उसे खून चढ़वाया. फिर बोनमेरो ट्रांसप्लांट करवाया. अंत में हमने उसे खो दिया. जो गलती हमने की, वो कोई दूसरा ना करे।

एक बोर्न फाइटर थी केनिशा

वे बताते हैं कि नौ साल के उस पूरे संघर्ष को एक किताब के रूप में लिपिबद्ध किया है. किताब को नाम दिया है “केनिशाः ए बोर्न फाइटर”. इसमें लिखा गया है कि किस तरह उसके ट्रांसप्लांट की तैयारी हुई. उसके पिता के तौर पर उसे बोनमेरो डोनेट किया. केनिशा और उसकी मदर तीन-चार महीने तक बिना बाहरी दुनिया के संपर्क में रहे अस्पताल में रहीं. मैं वो सब बाहर से सुनता, सोचता और समझता रहा. कई बार लगा कि अब जीत मिलने वाली है और फिर तबीयत बिगड़ने लगती.

बेटी नहीं हिम्मत रही है मेरी

अजय कहते हैं कि केनिशा शुरू से मेरी हिम्मत रही है. हम एक बार इंजेक्शन में दर्द से रो जाते हैं, उसके हर पन्द्रह दिन में खून चढ़ता था. वो दर्द को अपने में समेटे सब करवा लेती थी. जहां तक बात अनुभवों को लिखने की है, यह किताब के केवल इस लिए लिखी गई है. क्योंकि एक तो थैलेसीमिया जैसी बीमारी के बारे में लोगों में जागरूकता नहीं है. वहीं एक पिता के तौर पर मेरी जिम्मेदारी है कि जिन हालातों का सामना हमने किया है, वैसे हालात कोई और ना देखे. यह मेरी बेटी और उसके संघर्ष को श्रद्धांजलि भी है. बच्चे अपने पिता के नाम से जाने जाते हैं, मैं वो खुशकिस्मत पिता हूं जो अपनी बेटी के नाम से पहचाना जाएगा.

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