ajmer 92 full story: देश के इतिहास में वर्ष 1992 एक काला अध्याय के रूप में जुड़ गया. अजमेर (Ajmer news) में 100 से ज्यादा स्कूली छात्राओं के साथ दुष्कर्म और फिर उनकी न्यूड फोटोज खींचकर ब्लैकमेलिंग की गई. ये तस्वीरें कई लोगों में बंटी. जहां गई वहीं ब्लैकमेलिंग और फिर दुष्कर्म का दंश झेलने वाली छात्राओं में 6 ने आत्महत्या की राह चुन ली. इस घटना पर फिल्म ‘अजमेर 92’ (film Ajmer 92) बनी है जो तमाम विरोधों और विवादों के बावजूद 21 जुलाई यानी शुक्रवार को रिलीज हो गई.
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इस फिल्म के निर्माता उमेश तिवारी हैं. रिलायंस एंटरटेन्मेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म में करण वर्मा, सुमित सिंह, विजेंद्र काला, जरीना वहाब, मनोज जोशी और सयाजी शिंदे ने अभिनय किया है. फिल्म का निर्देशन पुष्पेंद्र सिंह ने किया है. इस फिल्म के आने के बाद एक बार फिर देश को शर्मसार करने वाली घटना की चर्चा होने लगी है.
ये पूरा मामला
बात साल 1992 की है. आरोपियों ने एक बिजनेसमैन के बेटे से दोस्ती की. उसके साथ कुकर्म कर अश्लील तस्वीरें खींच ली. इसके बाद उसे ब्लैकमेल करने लगे. आरोपियों ने उसपर दबाव डाला कि वो अपनी गर्लफ्रेंड को किसी बहाने से फायसागर स्थित फरुख चिश्ती के पॉल्ट्री फॉर्महाउस में लेकर आने का दबाव बनाया. बिजनेसमैन का बेटा अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर वहां फॉर्महाउस पहुंचा. वहां आरोपियों ने उसका दुष्कर्म किया. रील वाले कैमरे से न्यूड तस्वीरें उतारीं और अपने दोस्तों को बुलाकर दुष्कर्म कराया. फिर उस युवती को ब्लैकमेल कर कहा कि वो अपनी फ्रेंड को लेकर आए नहीं तो सारी तस्वीरें बांट दी जाएंगीं. युवती अपने स्कूल की फ्रेंड्स को लेकर आई. ऐसे धीरे-धीरे करीब 100 से ज्यादा लड़कियों के साथ दुष्कर्म हुआ और इनकी न्यूड तस्वीरें रील वाले कैमरे से खींची गईं. ये सभी लड़कियां 17-20 साल की थीं.
इधर न्यूड तस्वीरों की जीरॉक्स कॉपियां बंट गईं
इधर न्यूड तस्वीरों की रील साफ करने के लिए जिस फोटो लैब में दी गई वहां के कर्मचारी ने इन तस्वीरों की कॉपी बनाकर दूसरों को दे दी. अब ये तस्वीरें बाजार में बंटने लगीं. जिनके पास गईं उन्होंने लड़कियों को ब्लैकमेल कर अलग-अलग स्थानों पर बुलाकर रेप किया. तस्वीरें फैलने लगीं तो एक के बाद एक 6 लड़कियों ने सुसाइड कर लिया. परिवार ने भी बेटियों से मुंह मोड़ लिया.
ऐसे हुआ शर्मनाक घटनाक्रम का खुलासा
कुछ लड़कियां थाने पहुंच गई. तस्वीरें बाजार में आईं तो खबर पुलिस महकमे में भी फैल गई. पीड़िताओं में शहर के बड़े-बड़े अफसरों की बेटियां भी थीं. पता चला कि मामले में अजमेर शहर यूथ कांग्रेस प्रेसिडेंट, वॉइस प्रेसिडेंट और जॉइंड सेक्रेटरी के साथ-साथ शहर के रईसजादों के नाम थे. केस के मुख्य अभियुक्तों में अजमेर यूथ कांग्रेस अध्यक्ष फारुख चिश्ती, नफीस चिश्ती और अनवर चिश्ती के नाम आते ही पुलिस केस को दबाने लगी.
एक अखबार ने पूरे शहर को हिला दिया
फिर स्थानीय दैनिक नवज्योति अखबार में युवा रिपोर्टर संतोष गुप्ता ने खबर लिखी और प्रशासन हिलने लगा. घरों में जो तहां था वहीं ठिठक गया. जड़ हो गया. मानों शहर में ये क्या हो गया. गंगा-जमुनी तहजीब और सौहार्द्र वाले इस शहर को किसकी नजर लग गई. इन बेटियों के साथ ये दरिंदों ने ये क्या कर दिया. हर किसी का खून खौल रहा था. खबर में गिरोह के लोग धार्मिक-राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक सभी तरह से प्रभावशाली बताए गए थे. इधर समाजकंटक अपने कूकर्मों के साक्ष्य मिटाने में लग गए. वहीं ओहदेदार आरोपियों को को बचाने में लग गए.
कई परिवार शहर छोड़ने लगे!
पीड़िताओं के कुछ परिवार शहर छोड़कर जाने की तैयारी में लग गए. घटना पूरे शहर में फैल चुकी थी पर कुकर्मी सलाखों से दूर थे. पीड़िताएं और उनका परिवार घनघोर मानसिक त्रासदी में थे. इधर प्रशासन के लोग शासन के आदेश की पालना में और उधर शासन अपने सिंहासन और कुर्सी बचाने में व्यस्त हो गया.
खबर छपने से पहले ही जान चुका था प्रशासन
अखबार में ये खबर आने के पहले अजमेर जिला पुलिस प्रशासन ने गोपनीय जांच में यह जान लिया था कि गिरोह में दरगाह के खादिम परिवारों के कई युवा रईसजादे शामिल हैं. ये राजनीतिक रूप से वे युवा कांग्रेस के पदाधिकारी भी हैं और आर्थिक रूप से प्रभावशाली भी.
पुलिस के सामने ये पेंच
जिला पुलिस प्रशासन को यह अच्छी तरह पता चल गया था कि पीड़िताओं के सामने आए बिना यदि किसी पर भी हाथ डाला जाएगा तो नगर की शांति और कानून व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने का बड़ा जोखिम होगा. यदि शांति और कानून व्यवस्था संभाल भी जाए तो क्या पता इसमें अजमेर के किन-किन प्रभावशाली व प्रतिष्ठत परिवारों की बच्चियां प्रभावित हैं. नगर के कौन-कौन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी या उच्च पदस्थ राजनीति जनप्रतिनिधी तक इसके तार जुड़े हैं. लिहाजा स्थानीय जिला पुलिस प्रशासन ने तत्कालीन मुख्यमंत्री भाजपा के भैरोंसिंह शेखावत को घटना की सूचना दी. कहते हैं कि तब सीएम भैरोसिंह शेखावत ने शांति और कानून व्यवस्था बिगड़ने नहीं देने और अपराधियों को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ने के स्पष्ट संकेत देते हुए एक्शन लेने को कहा. इधर आरोपियों को साक्ष्य मिटाने और फरार हो जाने का मौका मिल गया.
इस बार ये तस्वीरें छप गईं
पहली खबर प्रकाशित हुए करीब एक पखवाड़ा बीत चुका था पर पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सकी. इधर पत्रकार संतोष गुप्ता ने दूसरी खबर ‘छात्राओं को ब्लैकमेल करने वाले आजाद कैसे रहे गए?’ शीर्षक से प्रकाशित हो गई. इस बार अखबार में आरोपियों की शर्मसार कर देने वाली करतूत ही अखबार में छप गई. जिससे अजमेर में छात्राओं के साथ हो रहे यौन शोषण को खुली आंखों से देखा जा सकता था. फोटो के प्रकाशन के बाद तो समूचे राजस्थान में जैसे कोई झंझावात आ गया.
गृह मंत्री ने दिया ये विवादित बयान
इधर तीसरी खबर ‘सीआईडी ने पांच माह पहले ही दे दी थी सूचना!’ शीर्षक से प्रकाशित हुई. फिर चौथी खबर प्रदेश के गृहमंत्री भाजपा के दिग्विजय सिंह का वो बयान छपा जिसमें उन्होंने कहा कि ‘डेढ़ महीने पहले ही ये तस्वीरें देख लिया था’ . इसके बाद तो जनता का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया. जनता ने सड़कों पर उतरकर अजमेर बंद का ऐलान कर दिया. शासन और प्रशासन पर भारी दवाब पड़ा. नगर के जागरूक संगठन गुनाहगारों को सजा दिलाने के लिए सक्रिय हो गए. इसे लेकर विश्वहिंदू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल जैसे संगठनों ने मुट्ठियां तान ली.
वकीलों ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
अजमेर जिला बार एसोसिएशन ने मीटिंग कर शहर के बिगड़ते हालात को लेकर आपस में चर्चा शुरू कर दी. पीड़िताओं के अभाव में अपराधियों को सजा दिलाने की तरकीब सोचने लगे. वकीलों की एक टीम ने तत्कालीन जिला कलक्टर अदिति मेहता से मुलाकात की. पुलिस अधीक्षक एमएन धवन की मौजूदगी में बातकर रास्ता निकाला गया कि जिन भी आरोपियों को पहचाना जा चुका है उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में डाला जाए, जिससे जनता का गुस्सा शांत हो और माहौल साम्प्रदायिक ना बने.
बैठक में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
इसी बैठक में यह भी खुलासा हुआ कि जिला पुलिस प्रशासन को सबसे पहले अजमेर के युवा भाजपा नेता और पेशे से वकील वीर कुमार ने ये अश्लील फोटो दिखाकर षडयंत्र पूर्वक हिन्दू लड़कियों का मुस्लिम युवकों द्वारा यौन शोषण किए जाने की सूचना दी थी. साथ ही यह भी कहा गया था कि यदि कानूनन अपराधियों को नहीं पकड़ेगा तो हिन्दू संगठन कानून अपने हाथ में लेने से नहीं चूकेगा.
पहले गोपनीय जांच करने की कही गई बात
भाजपा और हिन्दूवादी संगठनों की इस चेतावनी से पुलिस प्रशासन थोड़ी सक्रिय हुई पर तत्कालीन उपाधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा को पहले मौखिक आदेश देकर मामले की गोपनीय जांच करने को कहा गया. गोपनीय जांच में हुए खुलासे के बाद तो जिला प्रशासन के हाथ पैर ही फूल गए. जिला पुलिस प्रशासन ने मामले का खुलासा किए जाने और अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे धकले जाने की बजाय पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डालने की कवायद कर डाली.
तत्कालीन DIG ने पीसी कर कह दी ये बात
तत्कालीन पुलिस उपमहानिरीक्षक ओमेन्द्र भारद्वाज ने बाकायदा प्रेस कॉफ्रेस कर खुलासा किया कि मामला वैसा नहीं है जैसा प्रचारित किया जा रहा है. अजमेर कि स्कूली छात्राओं के साथ किसी तरह का षडयंत्र पूर्वक ब्लैकमेल कर यौन शोषण नहीं किया गया है. मामले में जिन चार लड़कियों के साथ यौन शोषण होने के फोटो मिले हैं, पुलिस ने उनकी तहकीकात में पाया कि उनका चरित्र ही संदिग्ध है.
पुलिस महानिरीक्षक का बयान अखबारों में सुर्खियां बनने के बाद अजमेर ही नहीं राजस्थान भर में आन्दोलन शुरू हो गए. जगह-जगह आरोपियों को गिरफ्तार किए जाने की मांगें उठने लगीं. पीड़िताओं को न्याय देने की आवाज बुलंद होने लगी. कस्बे बंद होने की खबरें आने लगीं.
सरकार पर मामले को दबाने के आरोप लगे
तत्कालीन BJP सरकार पर मामले को दबाने के आरोप लगने लगे. तत्कालीन कांग्रेस नेताओं जिनमें वर्तमान राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व चिकित्सा मंत्री डॉ. रघु शर्मा सहित अनेक कांग्रेस नेताओं ने ही अजमेर में स्कूली छात्राओं के साथ हुए यौन शोषण अपराध की निंदा करते हुए अपराधियों को सजा दिए जाने की मांग उठानी शुरू कर दी. कांग्रेस नेताओं ने प्रकरण की जांच सीआईडी से कराए जाने का भी भाजपा सरकार पर दवाब बनाया.
30 मई 1992 को जांच CID CB को सौंपी गई
आखिरकार 30 मई 1992 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने मामला सीआईडी सीबी के हाथों में सौंप कर जांच कराए जाने का ऐलान कर दिया. इसकी सूचना अजमेर पुलिस को मिली तो उन्होंने सीआईडी सीबी के हाथों जांच शुरू होने से पहले तत्कालीन उपअधीक्षक हरिप्रसाद शर्मा के हाथों एक सादे पेपर पर प्राथमिकी लेकर उसे दर्ज कर लिया. इससे जिला पुलिस की भद पिटने से बच गई. पहली रिपोर्ट में गोपनीय अनुसंधान अधिकारी होने के नाते हरि प्रसाद शर्मा ने उन चारों अश्लील फोटो का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट दी कि अजमेर में स्कूली छात्राओं को किसी तरह अपने जाल में फंसाकर उनके अश्लील फोटो खींच कर ब्लैकमेल यौन शोषण किया गया. साथ ही अन्य लड़कियों को उनके पास लेकर आने का दवाब बनाने वाला गिरोह के सक्रिय होने की जानकारी मिली. फोटो के आधार पर अनुसंधान अधिकारी ने दो तीन पीड़िताओं की पहचान होने का भी प्राथमिकी में जिक्र किया. मामले की आगे जांच होने पर अन्य अपराधियों के नाम भी सामने आने की संभावना बताई गई थी.
मामले में इनके नाम सामने आए
अजमेर जिला पुलिस द्वारा रिपोर्ट दर्ज होने के अगले ही दिन सीनियर IPS अधिकारी एनके पाटनी अपनी पूरी टीम के साथ अजमेर पहुंच गए और 31 मई 1992 से जांच अपने हाथों में लेकर अनुसंधान शुरू कर दिया. जांच में युवा कांग्रेस के शहर अध्यक्ष और दरगाह के खादिम चिश्ती परिवार के फारूक चिश्ती, उपाध्यक्ष नफीस चिश्ती, संयुक्त सचिव अनवर चिश्ती, पूर्व कांग्रेस विधायक के नजदीकी रिश्तेदार अलमास महाराज, इशरत अली, इकबाल खान, सलीम, जमीर, सोहेल गनी, पुत्तन इलाहाबादी, नसीम अहमद उर्फ टार्जन, परवेज अंसारी, मोहिबुल्लाह उर्फ मेराडोना, कैलाश सोनी , महेश लुधानी, पुरुषोत्तम उर्फ जॉन वेसली उर्फ बबना एवं हरीश तोलानी के नाम सामने आए.
हरीश तोलानी था उस कलर लैब का मैनेजर
आरोपियों में हरीश तोलानी अजमेर कलर लैब का मैनेजर हुआ करता था जहां नफीस चिश्ती और सोहेलगनी छात्राओं के साथ यौन शोषण की नग्न रील धुलवाने और प्रिंट बनवाने के लिए लाते थे. फोटो प्रिंट के लिए कलर लैब के मालिक घनश्याम भूरानी के माध्यम से लैब पर आती थी. पुरुषोत्तम उर्फ बबना रील से प्रिंट बनाया करता था. यही वो व्यक्ति है जिसके जरिए सबसे पहले स्कूली छात्राओं की न्यूड फोटो अपराधियों को सबक सिखाने और मुस्लिम युवकों द्वारा छात्राओं का यौनाचार बंद कराए जाने के उद्देश्य से कलर लैब से बाहर निकलकर एक आर्किटेक्ट के पास पहुंचाया जहां से वकील के माध्यम से भाजपा नेता वीर कुमार के पास पहुंचा. इससे अपराधी सजग हो गए और उन्होंने साक्ष्य लीक करने वाली कलर लैब के मालिक धनश्याम भूरानी का गला पकड़ लिया. फिर क्या था मामला प्याज के छिलकों की तरह खुलने लगा.
पुरुषोत्तम ने पत्नी समेत कर ली आत्महत्या
पुरुषोषत्तम ने जमानत पर रिहा होने के एक दो दिन बाद ही पत्नी के साथ घर पर आत्महत्या कर ली. इस स्कैंडल में जिन लड़कियों की फोटोज खींची गईं, उनमें से करीब 6 ने आत्महत्या कर ली. इन आत्महत्याओं की पुलिस ने जांच नहीं की. इस घटना में सबसे दर्दनाक बात यह रही कि इन लड़कियों के लिए न समाज और न ही घरवाले आगे आए, मामले के खुलासे में यह एक दुखद कड़ी साबित हुई. आरोपियों के सियासी रसूख के चलते कोई भी आगे नहीं आया.
बदनामी के डर से पीड़िताएं पीछे हटने लगीं
फोटो के आधार पर लड़कियों की पहचान की गई. इनसे बात करने की कोशिश की गई, लेकिन समाज में बदनामी के डर से कोई आगे आने को तैयार नहीं हुआ. समझाइश के बाद लड़कियों ने मामला दर्ज करवाया, लेकिन धमकियां मिलने के बाद सिर्फ कुछ ही लड़कियां डटी रहीं. शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए, लेकिन बाद में ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं. फिलहाल कोर्ट के रिकॉर्ड में 16 पीड़िताएं हैं.
कोर्ट में मुकर गईं पीड़िताएं
अदालत में बयान के दौरान कुछ पीड़िताएं पारिवारिक और सामाजिक कारणों से मुकर गईं. इसके बाद अदालत ने कहा कि केस की गंभीरता को देखते हुए जो बयान दर्ज हुए हैं उन्हें ही उन पीड़िताओं का बयान माना जाए. साथ अदालत ने DIG आमेंद्र भारद्वाज के बयान पर कहा कि जांच से पहले ही मीडिया को ये बयान कैसे दे गए कि इन लड़कियों का चरित्र उचित नहीं है. कोर्ट ने राज्य सरकार को इसकी जांच कराने के निर्देश दिए.
8 को आजीवन कारावास, हाईकोर्ट में 4 हुए बरी
वर्ष 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने 12 में से 8 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाया. इधर मामले में हाईकोर्ट ने निचली अदालत से सजा पाए 4 दोषियों को बरी कर दिया. साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी 4 की सजा को आजीवन कारावास से बदलकर 10 साल कर दिया. इनमें इनमें मोइजुल्ला उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, इशरत, अनवर चिश्ती और शम्शुद्दीन उर्फ माराडोना शामिल था.
एक दिमागी रूप सेपागल घोषित हो गया
वर्ष 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने मुख्य फारूक चिश्ती को भी दोषी ठहराया. इसको सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी के बाद पागल घोषित कर दिया गया. 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारूक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है. 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और जमानत पर रिहा हो गया. अन्य आरोपियों को भी जमानत मिल गई थी. उधर, पीड़िताएं हैं जो अदालत से मिल रहे समन से परेशान होकर अब कोर्ट में हाजिर पेशी पर बयानों के लिए आना बंद कर दिया है.
सालों बाद पकड़ में आए आरोपी
मामले में 3 मास्टरमाइंड समेत 12 के खिलाफ चार्जशीट पेश की गई. एक आरोपी नसीम ऊर्फ टारजन अंतरिम जमानत पर फरार हो गया और बाद में 18 साल बाद 2010 में पुलिस के हत्थे चढ़ा. मुख्य आरोपी फरुख चिश्ती को वर्ष 2007 में सजा मिली. बाद में उसे भी पागल घोषित हो गया. नफीस को 11 साल बाद 2003 में पकड़ा गया जो जमानत पर छूट गया. इकबाल भाटी को 13 साल बाद 2005 में पकड़ा गया. वो भी जमानत पर छूट गया. सलीम चिश्ती को करीब 20 साल बाद साल 2012 में बुर्के में पकड़ा गया. वो भी जमान पर बाहर आ गया. जमीर हुसैन को अंतरिम जमानत मिल गई. सोहेल गनी चिश्ती 26 साल बाद 2018 को सरेंडर किया और वो भी बेल पर है. मामले में एक आरोपी अलमास महाराज आज तक फरार
पीड़ित लडकियों के बयान के आधार पर करीब 16-17 आरोपियों की पहचान हुई . इनमे से अलमास महाराज विदेश में अमेरिका न्यूजर्सी में होना बताया जाता है. मामले में वर्तमान में पांच आरोपियों सोहेल गनी, इकबाल, जमीर, सलीम को छोड़ कर सभी की सजाएं पूरी हो गई हैं. जिनकी सजाएं पूरी नहीं हुई हैं वे जमानत पर हैं.
50-54 साल की हो गईं पीड़िताएं, इंसाफ का इंतजार
मामले में अधिकतर पीड़िताएं अब दादी-नानी बन चुकी हैं. वो कोर्ट के समन से परेशान हैं और पेशी पर आने से कतराती हैं. पिछले दिनों एक पीड़िता ने कोर्ट को बताया था कि पेशी पर आने से पहले वो अपने परिवार से झूठ बोलती हैं क्योंकि उनके साथ जो हुआ वो घर पर बताने से बचती हैं.
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